बोम्मई ने कहा कि 1973 से 1979 तक पेट्रोलियम उत्पादों की कीमत 1.20 रुपए से बढ़कर 3 रुपए हो गई। लगभग 150 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। इसके बाद 1979 से 1986 तक 3.60 रुपए से 8 रुपए यानी, 122 प्रतिशत, वर्ष 1983 से 1993 तक 8 रुपए से 18 रुपए यानी, 125 प्रतिशत, 1993 से 2000 तक 18 रुपए से बढ़कर 28 रुपए अर्थात् 55 प्रतिशत और वर्ष 2000 से 2007 तक यह 28 रुपए से बढ़कर 48 रुपए हो गई, यानी, 70 प्रतिशत की वृद्धि हुई। फिर 2007 से 2014 रुपए तक कीमतें 48 रुपए से बढ़कर 77 रुपए हो गईं। यानी, 7 साल में 60 प्रतिशत की वृद्धि हुई। वहीं, एनडीए के पिछले 7 वर्षों के शासन के दौरान कीमतें 77 रुपए से बढ़कर 100 रुपए से अधिक हो गई जो लगभग 30 प्रतिशत की वृद्धि है। इसलिए, यह कहना कि नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद ही पेट्रोल और डीजल की कीमतों में वृद्धि हुई है, गलत है।
बोम्मई ने कहा कि सिद्धरामय्या को यह अधिकार नहीं है कि वह केंद्र सरकार सेे पेट्रोल की कीमतों में 50 फीसदी कटौती करने को कहे। क्योंकि, एक दशक से अधिक समय तक वित्त मंत्री रहते उन्होंने एक बार भी पेट्रोल की कीमतों में कटौती नहीं की। ऑयल बांड विवाद पर उन्होंने कहा कि पिछले 7 वर्षों में केंद्र सरकार ने 36 लाख करोड़ रुपए जुटाए और उसका 40 प्रतिशत राज्यों को दिया। केंद्र सरकार ने किसानों को बेहतर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) देकर अनाज खरीदा। यूपीए शासनकाल की तुलना में अनाज के भाव दोगुने से भी अधिक हो गए।
उन्होंने कहा कि सरकार कोविड महामारी के दौरान गरीबों को मुफ्त राशन उपलब्ध कराने और सड़कों सहित बुनियादी ढांचे के विकास पर भी खर्च कर रही है। कांग्रेस शासनकाल में जब स्पेनिश महामारी आई तो लाखों लोग भूख से मर गए। लेकिन, कोविड महामारी के दौरान मोदी के शासन में एक भी व्यक्ति भूख से नहीं मरा। इससे पहले सिद्धरामय्या ने ऑयल बांड का मुद्दा उठाते हुए सरकार से जुटाए गए राजस्व का विवरण मांगा था।
मुद्रास्फीति पर बोम्मई ने कहा कि यूपीए शासन की तुलना में ईंधन की बढ़ती कीमतों का अन्य वस्तुओं की कीमत पर असर नहीं पड़ा है। यूपीए सरकार के समय मुद्रास्फीति 10 प्रतिशत से अधिक हो गई थी। मोनेटाइजेशन पर उन्होंने कहा कि यह नीति कांग्रेस सरकार ही लेकर आई थी। कांग्रेस सरकार ने मुंबई-पुणे एक्सप्रेस-वे पर 90 हजार करोड़ रुपए लिए थे और एक रेलवे स्टेशन के मोनेटाइजेशन का प्रस्ताव रखा था।