जेटली ने कहा है कि यह एक गैर-विचारधारा वाली अवसरवादी गठबंधन सरकार है जिसका कोई एजेंडा नहीं है। इस गठबंधन का एक ही मकसद है नरेंद्र मोदी को सत्ता से दूर रखना। ‘हमने देखा कि कुमारस्वामी भावुक हो गए। उनकी आंखें भर आईं और उन्होंने पुष्पगुच्छ एवं मालाएं स्वीकार करने से इनकार कर दिया। लेकिन उन्होंने बेबाकी से अपनी बात सार्वजनिक मंच पर रखा।
एक मुख्यमंत्री का दर्द सुनकर उन्हें हिंदी सिनेमा के ट्रेजडी युग की याद आ गई जब केवल संवादों के माध्यम से कलाकारों का दर्द छलकता था।’ उन्होंने कहा है कि जब महज दो दलों के गठबंधन का यह हाल है तो उस महागठबंधन का क्या होगा जिसमें विरोधी विचारधारा वाले दल शामिल होंगे। देश को एक ‘बेचारा’ (निसहाय) प्रधानमंत्री नहीं चाहिए।
अपने पूर्व के एक ब्लॉग का उल्लेख करते हुए जेटली ने कहा है कि विपक्षी नेता एक काल्पनिक विकल्प बनाने की कोशिश कर रहे है। अलग-अलग विचारधारा वाले राजनीतिक दल एकजुट होने की बात कर रहे हैं। इन नेताओं में कुछ स्वाभाविक हैं तो कुछ ऐसे हैं जो समय के हिसाब से विचारधारा बदल लेते हैं। इसमें टीएमसी, डीएमके, तेदेपा, बसपा, और जद-एस शामिल हैं। लेकिन, परस्पर विरोधी विचारधारा वाली पार्टियों का गठबंधन अपने ही विरोधाभासों में घिर जाती है।
उनका एक ही उद्देश्य होता है कि किसी तरह सत्ता में बने रहें। देश सेवा उनका लक्ष्य नहीं होता। अगर ऐसी किसी गठबंधन सरकार का लाचार प्रधानमंत्री कैमरे के सामने इस इरादे से रोता है कि कैसे पद मुक्त हो जाए तो वह यूपीए-2 की लकवाग्रस्त नीतियों वाली सरकार से भी बदतर स्थिति होगी। कांग्रेस सिर्फ एक परिवार के शासन में विश्वास करती है और जब किसी दूसरे को मौका मिल जाता है तो उसे इस तरह लाचार बना दिया जाता है कि वह हाथ खड़े करे और सार्वजनिक मंच पर रोये।
जेटली ने कहा कि पूरा देश कर्नाटक के घटनाक्रम को पिछले दो महीने से बड़े गौर से देख रहा है। यह बिना विचारधारा वाले अवसरवादी गठबंधन का परिणाम है। लेकिन, भारतीय प्रधानमंत्री और उनकी सरकार को देश के सामने पेश होने वाली चुनौतियों का सामना करना होगा और उससे पार पाना होगा।
देश को कर्नाटक के मुख्यमंत्री जैसा प्रधानमंत्री नहीं चाहिए जो ट्रेजडी किंग है। अगर गठबंधन जहर का एक प्याला है तो उसे देश को पिलाने का सपना भी क्यों देखें। विश्व की सबसे तेज गति से विकास करने वाली अर्थव्यवस्था वाले देश का प्रधानमंत्री ‘बेचारा’ नहीं हो सकता।