अल्पसंख्यकों को वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल कर रही कांग्रेस: शेट्टर
विधानसभा में विपक्ष के नेता जगदीश शेट्टर ने आरोप लगाया कि कांग्रेस पार्टी अस्पसंख्यकों का वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल कर रही है।

बेंगलूरु. विधानसभा में विपक्ष के नेता जगदीश शेट्टर ने आरोप लगाया कि कांग्रेस पार्टी अस्पसंख्यकों का वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल कर रही है। उनके साथ भाजपा ने नहीं बल्कि कांग्रेस ने ही अन्याय किया है। भाजपा कभी भी अल्पसंख्यकों के विरुद्ध नहीं रही है।
उन्होंने शुक्रवार को राज्यपाल के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर बहस में हिस्सा लेते हुए कहा कि कांग्रेस पिछले छह सात दशकों से उनका वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल करती चली आ रही है पर उसने उनके विकास के लिए कुछ नहीं किया जिसकी वजह से वे आज भी पिछड़े हुए हैं। कांग्रेस उनको शिक्षा सहित विभिन्न सुविधाएं प्रदान करने में विफल रही है।
उन्होंने कहा कि तीन तलाक विधेयक को लोकसभा में पारित कर दिया गया लेकिन राज्यसभा में इसे पारित करने के मार्ग में कांग्रेस रोड़े क्यों अटका रही है। मुस्लिम महिलाओं ने इस विधेेयक का स्वागत किया है ऐसे में कांग्रेस का विरोध समझ से परे हैं। कांग्रेस की दोहरी मानसिकता निंदनीय है। उन्होंने आरोप लगाया कि अल्पसंख्यकों को भाजपा के खिलाफ लामबंद करना ही कांग्रेस का काम रह गया है। उन्होंने कहा कि पिछड़ों के विकास की बात करने वाली कांग्रेस ने पिछड़ा आयोग को संवैधानिक दर्जा देने संबंधी विधेयक राज्यसभा में अटका दिया है।
विधानसभा में भी उठा हड़तालों का मामला
बेंगलूरु. वेतनवृद्धि की मांग को लेकर पिछले ५ दिनों से फ्रीडम पार्क में धरना दे रही मिड डे मील कार्यकर्ताओं की हड़ताल की गूँज शुुक्रवार को विधानसभा में सुनाई दी। विपक्ष के नेता जगदीश शेट्टर ने राज्य सरकार से उन्हें न्याय दिलाने के कदम उठाने की मांग की और कहा कि यदि केंद्र सरकार से मदद दिलवानी है तो सरकार प्रस्ताव तैयार करे। सब मिलकर केन्द्र सरकार पर दबाव डालने को तैयार हैं।
विधानसभा में नियम 69 के तहत हुई बहस में शेट्टर ने कहा कि स्कूली बच्चों के लिए दोपहर का भोजन बनाने वाली महिलाएं बच्चों को साथ लेकर बेंगलूरु के फ्रीडम पार्क में तीन दिनों से धरना दे रही हैं। महिलाओं को भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि इन महिलाओं को सुबह 9.30 बजे से लेकर शाम 4.00 तक परिश्रम करना पड़़ता है और इसके बदले में सरकार उन्हें हर माह मात्र 2200 रुपए का पारिश्रमिक देती है।
ऐसे में वे किस तरह गुजारा चला सकती हैं। हाजिरी की आड़ लेकर उनको काम से निकालने के बजाय सरकार उनको डी दर्जे के कर्मचारी का दर्जा दे और उनका वेतन बढ़़ाए। मानदेय को कम से कम 5 हजार रुपए तक बढ़ाना उनकी प्रमुख मांग है। लिहाजा सरकार सबसे पहले यह काम करे। यदि केन्द्र सरकार से मदद चाहिए तो प्रस्ताव तैयार करें हम केंद्र पर दबाव डालने को तैयार हैं। जद (ध) के कोनरेड्डी ने कहा कि यह केंद्र सरकार की योजना है लिहाजा 90 फीसदी वेतन का भुगतान केंद्र को करना चाहिए लेकिन केन्द्र सरकार के पीछे हटने से राज्य सरकार को अधिक धन खर्च करना पड़ रहा है। श्रम कानून के अनुसार उन्हें न्यूनतम 12 हजार रुपए वेतन मिलना चाहिए।
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