हमारा हरेक विचार, वचन और व्यवहार एक बीज की तरह है जो हम मन की धरती पर बोते हैं। यह बीज बोने का काम निरन्तर बना रहता है। जो बीज बोते समय ध्यान न रखेगा कि बीज किसके बो रहा है तो वही फल काटते समय दुखी भी होगा। कर्म की छाया सदा ही सजग रहती है। इसलिए इस छाया से बचने का एक ही उपाय है और वह है सतत सावधानी रखना। जीवन को पुण्य कर्मों से नन्दन वन बनाएं ताकि जीवन में सुख वैभव बना रहे। यह तभी सम्भव है जब हम दूसरों के जीवन में भी खुशियों के फूल खिला सकें। जो औरों के काम आएगा वही पुण्य के मधुर फल पाएगा। त्रषभ मुनि ने मांगलिक प्रदान की। संचालन विकास सालेचा ने किया।
सिर्फ तन की सुंदरता से नहीं मिलेंगे परमात्मा
चामराजपेट में साध्वी अर्पिता ने कहा कि हम तन को सुंदर बनाने के लिए ब्रांडेड चीजों का उपयोग करते हैं, पर इस तन को सुंदर बनाकर हम परमात्मा को नहीं पा सकते। उन्होंने कहा कि यदि परमात्मा को पाना है तो हाथ से दान करना होगा, कान से प्रवचन को सुनना होगा, मुंह से अच्छे वचन बोलने होंगे, आंख से प्रभु के दर्शन करने होंगे- तभी हमारी आत्मा का कल्याण हो सकता है। साध्वी वीना ने अंतगड़ सूत्र का वाचन किया। इसके बाद महिला मंडल ने नाटिका का मंचन किया। साध्वी वीरकांता ने मंगलपाठ सुनाया।
पर्युषण आत्म शोधन का पर्व
बेंगलूरु. मेवाड़ भवन, यशवंतपुर में मुनि रणजीत कुमार ने कहा कि पर्युषण आत्म विशोधन का पर्व है। आत्मशुद्धि के लिए इस तपोयज्ञ में सभी को आहुति देनी चाहिए। उन्होंने कहा कि अग्नि में स्नान करके कुंदन विशुद्ध हो जाता है। वैसे ही तपस्या से आत्मा में व्याप्त सभी कर्म मल साफ होते हैं।
स्वाध्याय का महत्व बताते हुए मुनि रमेश कुमार ने कहा कि जो साधक स्वाध्याय और ज्ञान में रत रहता है उसे ज्ञान की प्राप्ति होती है। नियमित स्वाध्याय करने से चित्त की एकाग्रता बढ़ती है। वह अपने आप को समाधिस्थ करता हुआ दूसरों को भी समाधिस्थ बना देता है। इससे पहले मुनिद्वय द्वारा नमस्कार महामंत्रोच्चारण किया गया। प्रेक्षा संगीत सुधा के गायक कलाकारों ने मंगलाचरण किया। तेरापंथ सभा मंत्री गौतम मूथा, प्रेमचंद चावत ने भी विचार व्यक्त किए। तेरापंथ भवन में 137वें जयाचार्य निर्वाण दिवस पर मुनि रणजीत कुमार एवं मुनि रमेश कुमार के सान्निध्य में महिला मंडल, यशवंतपुर ने चौबीसी के गीत से मंगलाचरण किया। निकिता बरडिया, दिव्या दक, मुस्कान भटेवरा ने जयाचार्य के जीवन से संबंधित प्रेरक संस्मरण सुनाए। संयोजन विनोद बरडिय़ा ने किया।