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पुलिस और प्रशासन में राजनीतिक दखल पर घमासान, सीएम ने चेताया सीमा ना लांघें अधिकारी

locationबैंगलोरPublished: Mar 13, 2018 12:54:53 am

एडीजीपी के पत्र पर विवाद …

vidhan soudha
बेंगलूरु. पुलिस और प्रशासन में राजनीतिक दखल को लेकर बढ़ते सियासी घमासान के बीच मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या ने सोमवार को अधिकारियों को चेतावनी देते हुए कहा कि वे अनुशासन की सीमा को ना लांघें। मुख्यमंत्री ने कहा कि सेवा नियमों की अवहेलना और सरकार की छवि को धूमिल करने की कोशिश करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कठोर अनुशासनिक कार्रवाई की जाएगी।
अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (एडीजीपी) राजवीर प्रताप शर्मा के मुख्य सचिव (सीएस) के. रत्नप्रभा को लिखे पत्र के कारण उपजे विवाद के बाद मुख्यमंत्री ने सोमवार को गृह मंत्री आर रामलिंगा रेड्डी, रत्नप्रभा और पुलिस महानिदेशक नीलमणि राज के साथ बैठक कर हालात की समीक्षा की। मुख्यमंत्री ने रविवार को भी कुछ मंत्रियों और अधिकारियों के साथ इस मसले पर बैठक की थी। शर्मा राज्य आईपीएस एसोसिएशन के अध्यक्ष भी हैं। हालांकि, विवाद बढऩे के साथ ही एसोसिएशन भी शर्मा के पत्र से पल्ला झाड़ चुका है और उसे उनकी व्यक्तिगत राय बता चुका है।
सूत्रों के मुताबिक सोमवार को बैठक में सिद्धरामय्या ने इस बात पर नाराजगी जताई कि कुछ आईएएस व आईपीएस अधिकारी अपने अधिकारों की सीमा को लांघनें की कोशिश कर रहे हैं। इससे सरकार के लिए असहज स्थिति पैदा हो रही है लिहाजा सरकार इस पर खामोश नहीं रहेगी। ऐसे अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का संकेत देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि अगर वरिष्ठ अधिकारियों को कोई समस्या है अथवा कोई मांगें हैं तो उन्हें सरकार और विभागीय प्रमुख से चर्चा करनी चाहिए। विभागीय व्यवस्था का पालन किए बिना पत्र लिखकर और उसे मीडिया में सार्वजनिक कर सरकार की छवि धूमिल करने की कोशिश को कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। बताया जाता है कि मुख्यमंत्री ने बैठक में काफी तल्खी भरे अंदाज में कहा कि अगर किसी अधिकारी का कोई राजनीतिक एजेंडा अथवा काम करने की इच्छा नहीं है तो वह इस्तीफा देकर जा सकता है। मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार को संवेदनशील प्रशासन तथा लोगों की अपेक्षाओं पर खरा उतरने के लिए अधिकारियों के तबादले का अधिकार है। इस अधिकार को प्रशासनिक अधिकारी चुनौती नहीं दे सकते है।
गौरतलब है कि लोकायुक्त पर कार्यालय में हुए हमले के एक दिन बाद ८ मार्च को रत्नप्रभा को लिखे पत्र में शर्मा ने कहा था कि नेताओं व अन्य लोगों के दखल के कारण लोगों का पुलिस पर विश्वास घट रहा है। पुलिस अधिकारियों के बार-बार तबादले पर नाराजगी जताते हुए कहा था कि इससे अधिकारियों और पुलिस बल में हीन भावना बढ़ती है और वे सही तरीके से काम नहीं कर पाते हैं। शर्मा ने पत्र में कहा था कि कुछ पदों पर तैनाती की अवधि साल भर से भी कम हो गया है। उन्होंने ड्यूटी करने पर अधिकारियों को दंडित किए जाने का आरोप लगाते हुए व्यक्तिगत मुलाकात के दौरान रत्नप्रभा को ऐसे मामलों के बारे में देने की बात कही थी। लोकायुक्त पर हमले, एक कांग्रेस पार्षद के बृहद बेंगलूरु महानगर पालिका के दफ्तर में आग लगाने की धमकी देने, एक कांग्रेस विधायक के बेटे के रेस्तरां में मारपीट करने सहित कुछ घटनाओं का हवाला देते हुए शर्मा ने पत्र में कहा था कि अगर मजबूत और पेशेवर व्यवस्था हो तो ऐसी घटनाओं से बचा जा सकता है। शर्मा ने कहा था कि ऐसा लगता है कि पुलिस अधिकारी सिर्फ सत्ता में रहने वाले लोगों के मुताबिक काम रहे हैं लेकिन अपनी प्रशासनिक व संवैधानिक दायित्वों को नहीं निभा रहे हैं। इस पत्र के सार्वजनिक होने के बाद राज्य सरकार ने रविवार को ही छवि बचाने की कवायद शुरु कर दी थी। मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से जारी बयान में राज्य आईपीएस संघ के सचिव प्रणव मोहंती के बयान का जिक्र करते हुए कहा गया था कि संघ का इससे कोई लेना-देना नहीं है। शर्मा ने पत्र लिखने से पहले संघ के पदाधिकारियों से विचार-विमर्श नहीं किया लिहाजा इसे उनकी निजी राय मानी जाए।
पत्र के पीछे राजनीतिक कारण!
एक वरिष्ठ मंत्री ने कहा कि पत्र की भाषा शैली और समय से इस बात की आशंका है कि इसके पीछे राजनीतिक कारण हो सकते हैं ताकि आसन्न विधानसभा चुनाव से पहले सरकार की छवि खराब की जा सके। मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा अभी बेंगलूरु में कानून-व्यवस्था की खराब स्थिति का आरोप लगाते हुए बेंगलूरु बचाओं पदयात्रा चला रही है और ऐसे में एडीजीपी स्तर के अधिकारी के पत्र ने सरकार की मुश्किल बढ़ा दी है। बताया जाता है कि मुख्यमंत्री ने मुख्य सचिव को निर्देश दिया है कि इस तरह का पत्र लिखने और उसे मीडिया में सार्वजनिक करने के उद्देश्य को लेकर संबंधित अधिकारी से स्पष्टीकरण मांगने और उसके बाद नियमानुसार कार्रवाई करने के लिए कहा है। उक्तमंत्री ने कहा कि इस वरिष्ठ अधिकारी ने शायद यह पत्र अच्छा पदस्थापन नहीं मिलने के कारण निराशा में लिखी है। सिद्धरामय्या के करीबी एक मंत्री ने कहा कि कुछ समय पहले शर्मा अपनी आईएएस अधिकारी पत्नी के साथ मुख्यमंत्री से पदस्थापन से जुड़े मामले को लेकर मिले थे। लेकिन अपनी गुहार नहीं सुने जाने से निराश होकर शायद उन्होंने यह पत्र लिखा। कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने आरोप लगाया कि उक्त अधिकारी को पत्र लिखने के लिए भाजपा के राष्ट्रीय स्तर के एक वरिष्ठ नेता ने भड़काया। गौरतलब है कि रविवार को प्रदेश के भाजपा नेता एस सुरेश कुमार ने शर्मा के पत्र को लेकर सरकार को घेरा था।
‘आम आदमी, पुलिस असफर भी असुरक्षितÓ
इस बीच, भाजपा ने एडीजीपी के पत्र को लेकर सरकार पर निशाना साधा है। प्रदेश भाजपा प्रवक्तएस सुरेश कुमार ने आईपीएस अधिकारी एसोसिएशन और मुख्य सचिव के बीच तत्काल बैठक आयोजित करने की मांग करते हुए कहा कि सिद्धरामय्या राज्य को देश में नंबर एक बता रहे हैं लेकिन यहां आम आदमी ही नहीं, पुलिस अधिकारी भी सुरक्षित नहीं है। सुरेश कुमार ने कहा कि यह काफी दुखद है कि राज्य में पुलिस अधिकारी व्यवस्था के अंदर खुद को सुरक्षित महसूस नहीं करते हैें। उन्होंने कहा कि राज्य की पुलिस व्यवस्था काफी तनाव में है और सत्तारुढ़ दल को अपने हितों की रक्षा के लिए किसी व्यवस्था और संस्था को बर्बाद करने की छूट नहीं दी जा सकती है। कुमार ने कहा कि पत्र की हर पंक्तिहालात को बयां करती है। कुमार ने कहा कि अधिकारियों के राजनीतिक दबाव में तबादले की बात चार साल के दौरान बेंगलूरु में छह पुलिस आयुक् बदले जाने से साबित होती है।
सीएस को पत्र लिखना बगावत नहीं : सीएम
बागलकोट. मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या ने कहा कि किसी अधिकारी का प्रशासनिक प्रमुख को प्रमुख को पत्र लिखना बगावत नहीं है। कुडलसंगम जाते वक्त हुणगुंद हेलीपैड पर पत्रकारों से बातचीत में एडीजीपी के पत्र के बारे में पूछे जाने पर मुख्यमंत्री ने पत्रकारों से ही सवालिया लहजे में कहा कि क्या एक आईपीएस अधिकारी के मुख्य सचिव को पत्र लिखने को बगावत की तरह देखा जाना चाहिए। मुख्यमंत्री ने कहा कि उन्हें नहीं पता कि उक्त आईपीएस अधिकारी ने पत्र में क्या लिखा है लेकिन मैं इतना आश्वस्त कर सकता हूं कि कांग्रेस के किसी मंत्री या विधायक का सरकार के दैनिक कामकाज में कोई दखल नहीं है।
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