जयदेव इंस्टीट्यूट ऑफ कार्डियोवैक्यूलर साइंसेस एंड रिसर्च के निदेशक डॉ. सीएन मंजूनाथ ने बताया कि पिछले सप्ताह इंस्टीट्यूट के 250 चिकित्सकों, नर्सों व अन्य स्वास्थ्यकर्मियों को एंटीबॉडी के लिए जांचा गया था। सभी ने इस वर्ष फरवरी में कोविशील्ड की दूसरी डोज ली थी। रिपोर्ट को देखते हुए कह सकते हैं कि फिलहाल बूस्टर डोज की जरूरत नहीं है। इन सभी कर्मियों को अप्रेल में भी जांचा गया था। 79 फीसदी कर्मियों के नमूनों में एंटीबॉडी मिले थे जबकि 21 फीसदी कर्मियों की रिपोर्ट निगेटिव निकली थी।
कुछ लेट रिस्पॉन्डर भी
डॉ. मंजूनाथ ने बताया कि 49 फीसदी स्वास्थ्य कर्मियों का एंटीबॉडी स्तर 90 फीसदी से ज्यादा निकला। सबसे अधिक एंटीबॉडी प्रतिक्रिया उन 19 स्वास्थ्य कर्मियों में देखी गई जिन्हें पूरी तरह से टीकाकरण के बाद हल्के संक्रमण का सामना करना पड़ा था। अप्रेल और सितंबर के बीच केवल 10 स्वास्थ्य कर्मियों के एंटीबॉडी के स्तर में गिरावट दिखी लेकिन यह संक्रमण से लडऩे या बचने के लिए पर्याप्त था। अध्ययन रिपोर्ट में यह बात भी सामने आई है कि कुछ लोगों में एंडीबॉडी का निर्माण देर से होता है। ऐसे लोगों को विलंबित प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाकर्ता (लेट रिस्पॉन्डर) की श्रेणी में रखा गया है।
दिसंबर में फिर से जांच
अध्ययन दल के मुखिया डॉ. नवीन जे. ने बताया कि कोविशील्ड की दोनों खुराक लेने के छह महीने बाद भी एंटीबॉडी की मौजूदगी से स्पष्ट है कि न्यूनतम छह माह तक बूस्टर डोज की जरूरत नहीं है।
डॉ. नवीन ने बताया कि कोरोना टीके की दोनों खुराक के बाद भी लोग संक्रमित हो रहे हैं और इसे ब्रेकथू्र संक्रमण कहते हैं। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि टीका अप्रभावी है। भविष्य में बूस्टर डोज की आवश्यकता को पूरी तरह से नकारा नहीं जा सकता है। हालांकि यह एक नितिगत निर्णय है। दिसंबर में सभी स्वास्थ्य कर्मियों को एंटीबॉडी के लिए जांचा जाएगा। तभी आगे की रणनीति तय कर सकेंगे।