कोरोना की मार : कैंसर, गुर्दा मरीजों को उपचार के लिए करना पड़ रहा इंतजार
समय पर डायलिसिस (Dialysis) नहीं मिलने से मरीज जोखिम में हैं। स्वस्थ लोगों की तुलना में कोरोना संक्रमण का खतरा कई गुना ज्यादा है। गुर्दा व कैंसर मरीजों के लिए कोरोना संक्रमण चिंताजनक है।

बेंगलूरु. कैंसर व गुर्दा के मरीजों को कोरोना (Corona effect on kidney and cancer patients) की सबसे ज्यादा मार झेलनी पड़ रही है। जहां प्रदेश के कुछ सरकारी अस्पतालों में ही डायलिसिस की सुविधा है वहीं कैंसर के एकमात्र सरकारी अस्पताल बेंगलूरु के किदवई मेमोरियल इंस्टीट्यूट ऑफ ऑन्कोलॉजी (केआइएमओ) में भी कोरोना काल में कैंसर मरीजों का उपचार आसान नहीं है।
संक्रमण का खतरा कई गुना ज्यादा
मणिपाल अस्पताल के अध्यक्ष व गुर्दा रोग विशेषज्ञ डॉ. सुदर्शन बल्लाल ने बताया कि समय पर डायलिसिस (Dialysis) नहीं मिलने से मरीज जोखिम में हैं। स्वस्थ लोगों की तुलना में कोरोना संक्रमण का खतरा कई गुना ज्यादा है। गुर्दा व कैंसर मरीजों के लिए कोरोना संक्रमण चिंताजनक है। ऐसे गुर्दा मरीजों को डायलिसिस के साथ आइसीयू की जरूरत भी पड़ती है जो कुछ अस्पतालों में ही उपलब्ध है।
कुछ सरकारी अस्पतालों में ही डायलिसिस सुविधा
बृहद बेंगलूरु महानगर पालिका (बीबीएमपी) के एक अधिकारी के अनुसार बीमारी के आधार पर मरीजों के लिए अस्पताल चुनना टेढ़ी खीर साबित हो रही है। कुछ सरकारी अस्पतालों में ही डायलिसिस सुविधा है। निजी अस्पतालों में डायलिसिस सुविधा होने के बावजूद गरीब मरीजों को इसका लाभ नहीं मिल रहा है। गिने-चुने निजी अस्पतालों में ही सरकारी कोटे के मरीज डायलिसिस करा पा रहे हैं। आर्थिक तंगी के कारण निजी अस्पताल में डायलिसिस नहीं करा पाने वाले मरीज सरकारी अस्पतालों या कोटे पर निर्भर हैं।
रेफर कर रहे निजी अस्पताल
108 एंबुलेंस सेवा और बीबीएमपी के साथ जुड़े इमरजेंसी रेस्पॉन्स टीम के सदस्य तौसीफ अहमद ने बताया कि हाल ही में हासन से बेंगलूरु लाए गए कोविड के 75 वर्षीय गुर्दा मरीज को डायलिसिस के साथ वेंटिलेटर की जरूरत थी। मरीज को हेपेटाइटिस-बी था। कई अस्पतालों के चक्कर काटने के बाद एक अस्पातल में जगह मिली लेकिन मरीज को बचाया नहीं जा सका। कैंसर मरीज भी परेशान हैं। कुछ निजी अस्पताल गंभीर मरीजों को सरकारी अस्पताल रेफर कर रहे हैं।
एनेस्थेटिस्ट कतराते हैं
केआइएमओ के एक चिकित्सक ने बताया कि कैंसर सर्जरी आसान नहीं है। सर्जरी लंबी अवधी की होती है। मरीज को सांस लेने में दिक्कत न हो इसके लिए श्वासनली में मुंह के जरिए एक एंडोट्रैचियल ट्यूब डाली जाती है। इसमें जोखिम होने के कारण ज्यादातर एनेस्थेटिस्ट कतराते हैं। अस्पताल के कई कर्मचारी कोरोना संक्रमित हो चुके हैं।
निगेटिव होने तक इंतजार
किसी भी मरीज को लौटाया नहीं जा रहा है। इतना जरूर है कि मरीज के कोरोना संक्रमण मुक्त होने तक सर्जरी, कीमोथेरेपी या रेडियोथेरेपी स्थगित कर रहे हैं। ओपीडी खुली है। लॉकडाउन समाप्त होने के बाद मरीजों की संख्या बढ़ी है। कोविड जांच के बाद ही मरीजों को भर्ती कर रहे हैं।
- डॉ. सी. रामचंद्र,
निदेशक, केआइएमओ
डायलिसिस के निर्देश
कुछ निजी अस्पतालों में सरकारी मरीजों के लिए डायलिसिस बिस्तर आरक्षित हैं। सरकार ने अतिरिक्त भुगतान का आश्वासन दिया है। अस्पतालों को डायलिसिस के लिए मना नहीं करने के निर्देश दिए गए हैं।
-डॉ. आर. रविन्द्र,
अध्यक्ष, प्राइवेट हॉस्पिटल्स एंड नर्सिंग होम्स एसोसिएशन।
पौष्टिक आहार की भी जरूरत
समय पर मरीजों का डायलिसिस न हो तो उनके शरीर का प्रतिरोधक तंत्र कमजोर पड़ेगा और कोरोना वायरस संक्रमण का खतरा भी बढ़ेगा। मरीजों को डायलिसिस के अलावा इस वक्त पौष्टिक आहार की भी जरूरत है। लेकिन ज्यादातर मरीजों के पास इसके लिए पैसे नहीं हैं।
-डॉ. श्री लक्ष्मी,
बेंगलूरु किडनी फाउंडेशन
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