उपचार के लिए मरीजों का एक से दूसरे अस्पताल भटकना, अस्पताल पहुंचने पर भी भर्ती होने के लिए घंटों इंतजार, निजी और सरकारी अस्पतालों द्वारा बिस्तरों और अन्य सुविधाओं की कमी का हवाला दे उपचार से मना करना और भर्ती करने से पहले कोरोना पॉजिटिव रिपोर्ट की मांग जैसी घटनाएं प्रदेश सरकार और स्वास्थ्य विभाग की उदासीनता व खोखले दावों का उदाहरण है।
स्वास्थ्य विभाग के कुछ अधिकारियों की मानें तो हर लैब (corona test lab) में प्रतिदिन हजार से ज्यादा नमूने जांचे जा सकते हैं लेकिन 70 फीसदी नमूनों की ही जांच हो पा रही है। कुछ लैब बंद हो चुके हैं तो कुछ को कर्मचारियों के संक्रमित होने के बाद मजबूरन बंद करना पड़ा है। कलबुर्गी, विजयपुर, बागलकोट, बल्लारी और बीदर से जांच के लिए नमूने बेंगलूरु भेजे जा रहे हैं।
प्रदेश टास्क फोर्स के सदस्य डॉ. सीएन मंजूनाथ के अनुसार प्रतिदिन पांच से छह हजार नमूने जांचने का लक्ष्य है। माइक्रोबॉयोलोजिस्ट, तकनीशियंस और कम्प्यूटर ऑपरेटर सहित एक लैब में कम-से-कम 10 कर्मचारियों की जरूरत पड़ती है। 10 अप्रेल तक प्रदेश में आठ जांच लैब ही थीं लेकिन अब करीब 80 लैब हैं। एक माह में 15 और लैब खोलने की योजना है।
केस-1
जयश्री (परिवर्तित नाम) ने बताया कि पति के कोरोना पॉजिटिव निकलने के बाद उन्होंने अपनी जांच कराई लेकिन छह दिन बाद रिपोर्ट आई। इस बीच लोगों को जिस घबराहट और अवसाद से गुजरना पड़ता उसका अंदाजा तक लगाना मुश्किल है।
केस-2
परप्पन अग्रहार केंद्रीय जेल में बंद 20 विचाराधीन कैदियों सहित छह जेल अधिकारियों व कर्मचारियों के नमूने नौ जून को लिए गए थे। लेकिन रिपोर्ट आई एक जुलाई को।
केस-3
दिहाड़ी मजदूर जयराम (परिवर्तित नाम) की पत्नी की मौत हो गई। कोरोना जांच के छह दिनों बाद उसे बताया गया कि उसकी पत्नी कोरोना संक्रमित थी।