तेजी से बदल रहा है कोरोना वायरस
- भारतीय विज्ञान संस्थान के अध्ययन में खुलासा

बेंगलूरु. कोरोना वायरस पहले की तुलना में तेजी से म्यूटेट (उत्परिवर्तित या रूप बदलना) कर रहा है। बेंगलूरु के तीन नमूनों के जीनोम (Genome) में 27 म्यूटेशन मिला और हर एक सैंपल में 11 से ज्यादा म्यूटेशन (Mutation) पाया गया, जो कि राष्ट्रीय औसत (8.4) और वैश्विक औसत (7.3) से ज्यादा है। वर्गानुवंशिकी विश्लेषण बेंगलूरु के वायरल नमूने (आइसोलेट) बांग्लादेश से सबसे अधिक निकटता से संबंधित हैं। भारत में आइसोलेट्स की उत्पत्ति एक ही पैतृक संस्करण से होने के बजाय कई मूल से है। भारतीय विज्ञान संस्थान (भाविसं - Indian Institute of Science) के शोध में यह बात सामने आई है।
जर्नल ऑफ प्रोटीन रिसर्च (Journal of Protein Research) में प्रकाशित इस हालिया अध्ययन में जैव रसायन विभाग के प्रो. उत्पल तातु की अगुवाई वाली टीम ने सार्स-सीओवी-2 (SARS-COV-2) के आइसोलेट्स या वायरल सैंपल में कई म्यूटेशन और यूनीक प्रोटीन की पहचान की है, जो कोविड-19 का कारण बनता है। साथ में यह भी दर्शाया है कि वायरल हमले के जवाब में शारीरिक प्रतिरक्षा प्रणाली जब काम करती है तब संक्रमित व्यक्ति यानी होस्ट स्वयं के कई प्रोटीन का उत्पादन करता है।
वायरस के म्यूटेशन और इसके प्रोटीन जीव विज्ञान को बेहतर तरीके से समझने के लिए शोधकर्ताओं ने सीओवी-2 के वायरल नमूने का व्यापक प्रोटोजोनोमिक अध्ययन किया। कोविड पॉजिटिव (Covid Positive) मरीजों की अनुमति के बाद उनके नाक से ये वायरल नमूने लिए गए थे।
प्रोटीन-जीनोमिक्स जैविक अनुसंधान का एक क्षेत्र है, जो पेप्टाइड्स की खोज और पहचान में सहायता करने के लिए प्रोटिओमिक्स (प्रोटीन का बड़े पैमाने पर अध्ययन), जीनोमिक्स और ट्रांसक्रिपटॉमिक्स (आरएनए का अध्ययन) के संयोजन का उपयोग करता है। अगली पीढ़ी के अनुक्रमण (एनजीएस) की मदद से जीनोमिक विश्लेषण किया गया। एक ऐसी तकनीक जो पूरे जीनोम की रैपिड सीक्वेंसिंग संभव है।
प्रो. तातु ने बताया कि म्यूटेशन पर नजर रखने के लिए दुनिया भर से लिए गए वायरल स्ट्रेन्स की सीक्वेंसिंग जरूरी है। वायरस के प्रसार और विकास के इतिहास को समझने के लिए टीम ने अनुक्रम डेटा का उपयोग करते हुए वायरल आइसोलेट्स का एक वैश्विक वर्गानुवंशिकी वृक्ष भी बनाया।
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