कोविड मरीजों के घरों में दम तोडऩे या मृत अवस्था में अस्पताल लाने के मामले बढ़ रहे हैं। तकरीबन हर दिन तीन से पांच ऐसे मामले सामने आ रहे हैं। कोविड के 135 मरीजों की मौत उनके घरों में हुई है जबकि गत एक माह में 70 लोगों (covid positive 135 people breathed their last at home and 70 were dead before reaching hospital) को मृत अवस्था में अस्पताल लाया गया। दोनों ही मामलों में मरीज के कोरोना वायरस से संक्रमित होने की पुष्टि मौत के बाद की गई जांच में हुई। चिकित्सकों के अनुसार ज्यादातर मरीजों की मौत हृदयघात या रक्त में ऑक्सीजन का स्तर कम होने से हुई। 80 फीसदी से ज्यादा मरीज एसएआरआइ या इन्फ्लूएंजा लाइक इलनेस यानी आइएलआइ या फिर अन्य बीमारियों से ग्रसित थे।
स्वास्थ्य विभाग के अनुसार कोरोना संक्रमण के लक्षणों को लोग शायद गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। 205 में से 52 मृतकों की उम्र 60 वर्ष से ज्यादा है। कई वरिष्ठ नागरिक फीवर क्लिनिक में जांच कराने से कतरा रहे हैं। बार-बार अपील के बावजूद लोग जांच के लिए आगे नहीं आ रहे हैं। एसएआरआइ और आइएलआइ के लक्षणों को लेकर लोग जागरूक रहें तो कई जिंदगियां बच सकती हैं।
विक्टोरिया अस्पताल के एक वरिष्ठ चिकित्सक के अनुसार सामाजिक लांछन के भय से भी कई लोग लक्षण सामने आने के बावजूद कोरोना जांच नहीं करा रहे हैं। तबीयत बिगडऩे पर जांच कराते हैं और रिपोर्ट आने में भी समय लगता है। तब तक काफी देर हो जाती है। कई मामलों में तो मौत के बाद जांच हुई है। लोगों को जागरूक करने की जरूरत है।
मधुमेह, उच्च रक्चाप और हृदय के मरीज के संक्रमित होने का खतरा पहले से ही ज्यादा है और संक्रमित होने के बाद समय पर उपचार नहीं कराने से ऐसे कई मरीज अचानक मौत के मुंह में चले जाते हैं। ऐसे मरीजों की समय रहते जांच हो और उपचार सुविधाएं उपलब्ध हों तो कईयों की जांन बचाई जा सकती है। लोगों को भी चाहिए कि स्थिति बिगडऩे का इंतजार नहीं करे और फौरन चिकित्सकीय परामर्श लें।