मरीज एक से दूसरे विभाग भटकने पर मजबूर थे। कइयों को निजी स्कैन केंद्रों का सहारा लेना पड़ रहा था। दूसरे विभाग में सीटी स्कैन कराने के कारण रिपोर्ट आने में दो से चार दिन का समय लगता था।
तब तक मरीज को आगे के उपचार के लिए इंतजार करना पड़ता था। दो विभागों के बीच मरीज ***** रहे थे। आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के मरीजों को काफी मुश्किला का सामना करना पड़ता था।
राजस्थान पत्रिका ने गत वर्ष 26 जून के संस्करण के पेज संख्या दो पर ‘धूल फांक रही दो करोड़ की सीटी स्कैन मशीन’ शीर्षक खबर प्रकाशित की थी। तब आइएनयू के निदेशक डॉ. शिवलिंगय्या एम. ने एक सप्ताह में स्कैन सुविधा शुरू होने की बात कही थी।
मगर ११ माह बीतने के बाद भी जब सेवा शुरू नहीं हुई तो पत्रिका ने इस वर्ष 28 अप्रेल के संस्करण के पेज संख्या चार पर ‘डेढ़ साल के बाद भी नहीं लगी सीटी स्कैन मशीन, गुर्दे के मरीज परेशान’ शीर्षक खबर प्रकाशित कर समस्या को फिर से उठाया।
इस बार भी डॉ. शिवलिंगय्या ने कुछ सप्ताह में सेवा शुरू होने का आश्वासन दिया। 10 दिन बाद नौ मई को मशीन का संचालन शुरू हो गया। मरीज, चिकित्सक व अन्य कर्मचारी भी खुश और संतुष्ट हैं। उल्लेखनीय है कि चिकित्सा शिक्षा विभाग की अनुमति के बाद गत वर्ष जनवरी माह में ही मशीन आई, इसकी कीमत करीब दो करोड़ रुपए है। चिकित्सकों की आपसी लड़ाई के कारण मशीन नहीं लग पाई। जिस कक्ष में इसे लगाना तय हुआ वह एक वरिष्ठ चिकित्सक का था।
इसके बाद एक्स-रे कक्ष में मशीन लगाने पर सहमति बनी। कक्ष के नवीकरण के लिए एक्स-रे सेवा करीब दो महीने तक बाधित रही। मरीजों को एक्स-रे के लिए विक्टोरिया अस्पताल पर निर्भर रहना पड़ा। नवीकरण कार्य में करीब तीन लाख रुपए अतिरिक्त खर्च
हुए थे।