वर्तमान भारतीय शिक्षा चिंता का विषय बनी-आचार्य देवेंद्रसागर
जैन इंटरनेशनल रेजीडेंसियल स्कूल में प्रवचन
बैंगलोर
Published: March 27, 2022 07:33:19 am
बेंगलूरु. आचार्य देवेंद्रसागर सूरी ने शनिवार को जकसंद्रा में जैन इंटरनेशनल रेजीडेंसियल स्कूल में शिक्षक एवं छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि पूरे विश्व की 18प्रतिशत जनसंख्या भारतीय है। औसत रूप से विश्व की कंपनियों में करीब 20प्रतिशत कर्मचारी भारतीय हैं। नासा में करीब 36प्रतिशत भारतीय वैज्ञानिक हैं। ये गर्व की बात हो सकती है लेकिन इनमें से शायद ही कोई भारतीय शिक्षा तंत्र की देन हो, यह एक राष्ट्रीय चिंता का विषय माना जा सकता है। भारतीय होना गर्व की बात है लेकिन वर्तमान भारतीय शिक्षा एक चिंता का विषय बनकर रह गई है। स्वतंत्रता के पश्चात भारत में शिक्षा का क्षेत्र पूर्णत: उपेक्षित हो गया। शिक्षा का व्यवसायीकरण हुआ। शिक्षा को अधिक से अधिक धनोपार्जन का माध्यम बनाने का प्रयास हुआ। बेकारी, बेरोजगारी को रोकने के लिए सतत प्रतियोगी परीक्षाओं की बाढ-सी आ गई। उच्च शिक्षा के मूल ढांचे में कोई परिवर्तन नहीं किया गया। आचार्य ने कहा कि इस तंत्र के जनक मैकाले ने ब्रिटिश संसद में एक भाषण के दौरान कहा था कि मैंने पूरे भारत की चतुर्दिक यात्राएं की हैं और पाया कि वहां पर कोई भी भिखारी या चोर नहीं है। वहां सभी उच्च नैतिक आदर्श वाले धनाढ्य लोग बसते हैं। मुझे नहीं लगता कि हम कभी उस देश को जीत सकते हैं, जब तक कि हम उस देश की रीढ की हड्डी यानी उसकी सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक विरासत पर कुठाराघात नहीं करेंगे। मैं प्रस्तावित करता हूं कि हमें भारत का पुराना सुदृढ़ शिक्षा तंत्र बदलना होगा। हमें भारत के जनमानस को यह सोचने पर मजबूर करना होगा कि विदेशी एवं अंग्रेज उनसे श्रेष्ठ हैं तब ये अपना स्वाभिमान एवं संस्कृति भूल जाएंगे तब हम जैसा चाहेंगे वैसे भारत पर शासन कर सकेंगे। वस्तुत: मैकालेवाद एक ऐसी योजना थी, जो शिक्षा प्रणाली के जरिए स्वदेशी संस्कृति को विदेशी औपनिवेशिक संस्कृति से स्थानापन्न करने के लिए प्रयासरत थी। मैकालेवाद का मुख्य उद्देश्य था भारतीयों की एक ऐसी जमात तैयार करना, जो रंग से भारतीय हो किंतु मिजाज, मतों एवं नैतिकताओं एवं तर्क में अंग्रेजीयत लिए हुए हो। उन्होंने कहा कि शिक्षा के साथ ही शिक्षक भी अपने दायित्व को गरिमापूर्ण ढंग से निबाहेंगे, तभी वांछित सफलता प्राप्त की जा सकती है। कभी कहीं वेतनमान, सुविधाओं संबंधी बात भले आए या कमी पड़े, लेकिन गुरु गरिमा को विस्मृत किए बिना, अपने गौरव का महत्व अनुभव करते हुए आगे बढ़ते चलें, क्योंकि प्रश्र मानवीय मूल्यों के संरक्षण और अभिवर्धन का है।

वर्तमान भारतीय शिक्षा चिंता का विषय बनी-आचार्य देवेंद्रसागर
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