मृत्यु खतरनाक नहीं, जन्म खतरनाक है-आचार्य विजयरत्न सेन
दासरहल्ली में धर्मसभा

बेंगलूरु. जैनाचार्य विजय रत्नसेन सूरीश्वर बसवेश्वरनगर से विहार कर दासरहल्ली पहुंचे। उन्होंने कहा कि इस संसार में जिसका जन्म है, उसकी मृत्यु निश्चित है। चारगतियों के सभी जीवों पर मृत्यु का एक छत्री शासन है। जन्म होते ही मरण भी निश्चित हो जाता है। इसलिए जगत के सभी जीव मृत्यु से डरते हैं। वास्तव में मृत्यु खतरनाक नहीं, जन्म खतरनाक है। क्योंकि जन्म के पीछे मृत्यु निश्चित है,परंतु मृत्यु के बाद जन्म निश्चित नहीं है। यदि आत्मा अपने समस्त कर्मों का क्षय करके मोक्ष प्राप्त कर ले, तो सदा काल के लिए मृत्यु की ही मृत्यु हो जाती हैं। जन्म-जरा और मरण के बन्धन से सदा काल के लिए मुक्ति मिल जाती है। जब तक आत्मा कर्मों के बंधनों से बंधी हुई है तब तक जन्म-जरा और मरण के बंधन है। इसलिए मनुष्य जन्म को पाकर जीवन में धर्म की आराधना-साधना द्वारा इन बंधनों से मुक्त होने के उपाय में प्रयत्नशील बनना चाहिए। दुनिया के लोग जन्म दिन का महोत्सव मनाते हैं। जन्म के दिन मोमबत्ती बुझाकर केक काटते हैं। परंतु वे इस बात को नहीं जानते कि वह जन्म दिन हमें अपनी मौत के पास ले जा रही है। जीवन का प्रत्येक दिन हमें मौत के निकट कर रहा है। जन्म दिन की तिथि तो हम सभी जानते हैं, परंतु मरण की तिथि कोई नहीं जानता है। अत: मरण का स्वागत करने हमे सदा तैयार रहना चाहिए। मरण का स्वागत यानी जीवन में धर्म की आराधना द्वारा अपनी सद्गति को निश्चित करना। मृत्यु की पले अति महत्वपूर्ण है, मृत्यु के समय यदि मन आत्मभाव में लीन हो तो आत्मा की सद्गति निश्चित हो सकती हैं और जब आत्मा को सद्गति कि प्राप्ति न हो, तो जन्म जन्मों तक सद्गति की परम्परा के साथ परम गति मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है।मृत्यु खतरनाक नहीं, जन्म खतरनाक है-आचार्य विजयरत्न सेन
दासरहल्ली में धर्मसभा
बेंगलूरु. जैनाचार्य विजय रत्नसेन सूरीश्वर बसवेश्वरनगर से विहार कर दासरहल्ली पहुंचे। उन्होंने कहा कि इस संसार में जिसका जन्म है, उसकी मृत्यु निश्चित है। चारगतियों के सभी जीवों पर मृत्यु का एक छत्री शासन है। जन्म होते ही मरण भी निश्चित हो जाता है। इसलिए जगत के सभी जीव मृत्यु से डरते हैं। वास्तव में मृत्यु खतरनाक नहीं, जन्म खतरनाक है। क्योंकि जन्म के पीछे मृत्यु निश्चित है,परंतु मृत्यु के बाद जन्म निश्चित नहीं है। यदि आत्मा अपने समस्त कर्मों का क्षय करके मोक्ष प्राप्त कर ले, तो सदा काल के लिए मृत्यु की ही मृत्यु हो जाती हैं। जन्म-जरा और मरण के बन्धन से सदा काल के लिए मुक्ति मिल जाती है। जब तक आत्मा कर्मों के बंधनों से बंधी हुई है तब तक जन्म-जरा और मरण के बंधन है। इसलिए मनुष्य जन्म को पाकर जीवन में धर्म की आराधना-साधना द्वारा इन बंधनों से मुक्त होने के उपाय में प्रयत्नशील बनना चाहिए। दुनिया के लोग जन्म दिन का महोत्सव मनाते हैं। जन्म के दिन मोमबत्ती बुझाकर केक काटते हैं। परंतु वे इस बात को नहीं जानते कि वह जन्म दिन हमें अपनी मौत के पास ले जा रही है। जीवन का प्रत्येक दिन हमें मौत के निकट कर रहा है। जन्म दिन की तिथि तो हम सभी जानते हैं, परंतु मरण की तिथि कोई नहीं जानता है। अत: मरण का स्वागत करने हमे सदा तैयार रहना चाहिए। मरण का स्वागत यानी जीवन में धर्म की आराधना द्वारा अपनी सद्गति को निश्चित करना। मृत्यु की पले अति महत्वपूर्ण है, मृत्यु के समय यदि मन आत्मभाव में लीन हो तो आत्मा की सद्गति निश्चित हो सकती हैं और जब आत्मा को सद्गति कि प्राप्ति न हो, तो जन्म जन्मों तक सद्गति की परम्परा के साथ परम गति मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है।
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