नाविक शृंखला के उपग्रहों से सिग्नल प्राप्त कर सही स्थान की गणना करते हुए संदेश प्रसारित करने के लिए वर्ष 2016 की शुरुआत में ही बेंगलूरु आधारित एक निजी कंपनी ने इसरो के सहयोग से तकनीक विकसित की थी लेकिन वह तकनीक फिलहाल एजेंसियों और संगठनों के लिए ही उपयोगी है।
स्वदेशी जीपीएस नाविक की सेवाएं आम आदमी तक पहुंचाने के लिए अंतरिक्ष के अलावा ग्राउंड सेगमेंट और रिसीवर की जरूरत है। पिछले 12 अप्रेल को शृंखला का आखिरी उपग्रह अंतरिक्ष में स्थापित कर इसरो ने 7 आवश्यक उपग्रहों को सक्रिय कर दिया है। ग्राउंड सेगमेंट भी तैयार है लेकिन इसका उपयोग आम आदमी तभी कर सकताहै जब वाणिज्यिक रूप से बड़े पैमाने पर माइक्रो आकार के रिसीवर तैयार हो जाएं।
जीपीएस से बेहतर सेवाएं देने में सक्षम
नेविगेशन उपकरणों में उपयोग के लिए इसरो ने एक माइक्रो चिपसेट की डिजाइनिंग भी तैयार की है लेकिन रिसीवर और चिपसेट का बड़े पैमाने पर वाणिज्यिक उत्पादन नहीं हो रहा है।
इसके पीछे एक वजह यह भी बताई जा रही है कि बाजार में अभी इसकी मांग नहीं है क्योंकि उपभोक्ता जीपीएस से संतुष्ट हैं और उसे पसंद भी कर रहे हैं। इसरो अधिकारियों का कहना है कि यह इंडस्ट्री के ऊपर है कि वह उन अनुप्रयोगों का उपयोग करे जो बेहतर है। इसरो ने नाविक शृंखला उपग्रहों को तैयार किया है जो जीपीएस से बेहतर सेवाएं देने में सक्षम है।
फिलहाल नाविक का गहरे समुद्र में जाने वाले मछुआरों को अलर्ट भेजने से लेकर सुरक्षा और ट्रैकिंग आदि में उपयोग हो रहा है। स्थानीय और केंद्र सरकारें भी इस तकनीक का उपयोग कर रही हैं लेकिन रोजमर्रा के उपयोग में आम उपभोक्ताओं तक पहुंचने में अभी वक्त लगेगा। एक चुनौती यह भी है कि मोबाइल निर्माताओं को इस बात के लिए राजी करना होगा कि भारत में उपयोग के लिए वे जीपीएस की जगह नाविक का उपयोग करें।