यह बात भी हम अच्छी तरह से जानते हैं, फिर भी मन भगवान में नहीं लगता हैं, तो इससे बढ़ कर और नास्तिकता क्या होगी। वस्तु विशेष में भगवत बुद्धि होना कोई कठिन बात नहीं है,पर यह अधूरी आस्तिकता है। पूरी आस्तिकता का अर्थ यह है कि भगवान से भिन्न कुछ है ही नहीं।
इस मौके पर पृथ्वी सिंह चांदावत, गणपत सिंह बालावत, लाबूराम तड़वा,चेनाराम प्रजापत, केर सिंह देवल, विजय सिंह,लाबूराम नरपुरा सहित अन्य सदस्य उपस्थित रहे।
इस मौके पर पृथ्वी सिंह चांदावत, गणपत सिंह बालावत, लाबूराम तड़वा,चेनाराम प्रजापत, केर सिंह देवल, विजय सिंह,लाबूराम नरपुरा सहित अन्य सदस्य उपस्थित रहे।