परमात्म के प्रति अनुराग ही सच्ची भक्ति है। देहरागी काम यात्रा तो कर सकता है मगर आत्म यात्रा नहीं। भक्ति रस में वही लीन रहता है जिसकी समस्त कामनाएं छूट गई है। परमात्म सागर में मछली के समान विचरण करने लगा है। प्रेम के जलाशय में परमात्मा के नामसरोवर में मन मछली की भांति विचरण करने लगता है।
सफलता और सम्मान पर विजय पाने वाला ही आत्मा पर विजय पाता है। किसी से ईष्र्या करने की बनिस्पत अपनी दुर्बुद्धि पर विजय प्राप्त करें। उदारता का अभाव ही उदण्डता का लोभवृत्ति का कारण है।
उदारता से ही उदासीनता दूर होती है। यदि मोक्ष मार्ग बनाना चाहते हो तो धन का संग्रह ही नहीं, धन के सद्पयोग की भावना रखें।