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पर्युषण आत्म शोधन का पर्व

locationबैंगलोरPublished: Sep 10, 2018 12:26:20 am

Submitted by:

Rajendra Vyas

मेवाड़ भवन, यशवंतपुर में मुनि रणजीत कुमार के प्रवचन

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पर्युषण आत्म शोधन का पर्व

बेंगलूरु. मेवाड़ भवन, यशवंतपुर में मुनि रणजीत कुमार ने कहा कि पर्युषण आत्म विशोधन का पर्व है। आत्मशुद्धि के लिए इस तपोयज्ञ में सभी को आहुति देनी चाहिए। उन्होंने कहा कि अग्नि में स्नान करके कुंदन विशुद्ध हो जाता है। वैसे ही तपस्या से आत्मा में व्याप्त सभी कर्म मल साफ होते हैं।
स्वाध्याय का महत्व बताते हुए मुनि रमेश कुमार ने कहा कि जो साधक स्वाध्याय और ज्ञान में रत रहता है उसे ज्ञान की प्राप्ति होती है। नियमित स्वाध्याय करने से चित्त की एकाग्रता बढ़ती है। वह अपने आप को समाधिस्थ करता हुआ दूसरों को भी समाधिस्थ बना देता है। इससे पहले मुनिद्वय द्वारा नमस्कार महामंत्रोच्चारण किया गया। प्रेक्षा संगीत सुधा के गायक कलाकारों ने मंगलाचरण किया। तेरापंथ सभा मंत्री गौतम मूथा, प्रेमचंद चावत ने भी विचार व्यक्त किए। तेरापंथ भवन में 137वें जयाचार्य निर्वाण दिवस पर मुनि रणजीत कुमार एवं मुनि रमेश कुमार के सान्निध्य में महिला मंडल, यशवंतपुर ने चौबीसी के गीत से मंगलाचरण किया। निकिता बरडिया, दिव्या दक, मुस्कान भटेवरा ने जयाचार्य के जीवन से संबंधित प्रेरक संस्मरण सुनाए। संयोजन विनोद बरडिय़ा ने किया।
उत्सव प्रिय है मनुष्य
विजयनगर स्थानक में साध्वी मणिप्रभा ने कहा कि मनुष्य उत्सव प्रिय है। उत्सव मनाना उसका शौक है। प्रकृति रंग बदलती है। कभी गर्मी, कभी वर्षा, कभी सर्दी। मनुष्य भी उसके हिसाब से अपने पहनने और खाने-पीने में परिवर्तन करता रहता है। पर्वाधिराज पर्युषण मनाने का दूसरा कारण भी है और वह यह है कि इसी दिन युग मानव अहिंसा धर्म का सर्वप्रथम अमृत स्पर्श करता है। जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति के अनुसार कालचक्र में उत्सर्पिणी काल का प्रथम आरा दुषम दुषमा 21000 वर्ष का है। इसके बीतने के बाद 21 हजार वर्ष का दूसरा आरा दुषम का प्रारंभ होता है। तब पृथ्वी एवं प्राकृतिक शक्तियों में परिवर्तन होता है। साध्वी ऋजुता ने कहा कि भारत वर्ष त्योहारों का देश रहा है। प्रत्येक त्योहार को मनाकर यह जीव सुखानुभूति करता है।
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