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मरो तो ऐसे मरो कि कभी दोबारा जन्म-मरण ना करना पड़े- ज्ञानमुनि

locationबैंगलोरPublished: Oct 21, 2019 08:27:23 pm

Submitted by:

Yogesh Sharma

स्थानक भवन में चातुर्मास प्रवचन

मरो तो ऐसे मरो कि कभी दोबारा जन्म-मरण ना करना पड़े- ज्ञानमुनि

मरो तो ऐसे मरो कि कभी दोबारा जन्म-मरण ना करना पड़े- ज्ञानमुनि

बेंगलूरु. अक्कीपेट स्थित वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ स्थानक भवन में चातुर्मास प्रवचन में पण्डितरत्न ज्ञानमुनि ने कहा कि तीर्थंकरों की जिनवाणी के श्रवण से भव्य जीवों के पाप कर्म टलते हैं और भव भ्रमण खत्म होता है। भगवान महावीर की अंतिम देशना श्रीमद उत्तराध्ययनसूत्र ज्ञान का अनुपम खजाना है। उत्तराध्ययनसूत्र हर साधक के लिए उपयोगी तो है ही लेकिन अगर कोई गृहस्थी में रहने वाला व्यक्ति भी इसका अध्ययन करे तो उसका भी बेड़ा पार हो जाता है। प्रभु की जिनवाणी पर पूर्ण श्रद्धा रखते हुए उसका सही आचरण करे तो जीव कभी भी नरक गति या तिर्यंच गति में जन्म नहीं लेता है। जैन धर्म के इतिहास में अनेक प्रसंग ऐसे आए हंै जहां दिव्य आत्माएं को मात्र एक बार जिनवाणी के श्रवण से जीवन में उत्कृष्ट वैराग्य आ जाता है। आगे उन्होंने उतराध्ययन सूत्र के पांचवे अध्ययन ‘अकाममरणिज्जं अज्झयणंÓ का वर्णन करते हुए कहा कि जो जन्म लेता है वह अवश्य मरता है। मरण दो प्रकार के होते हंै एक बाल मरण और दूसरा पंडित मरण। अधिकांश लोग अपने जीवन के मृत्यु के सच को स्वीकार नहीं कर पाते हैं। यदि वे अपने जिंदगी के अंतिम पलों में जी रहे हैं तो भी वे अपने संसार को बढ़ाने का ही प्रयत्न करते हैं। ऐसी मृत्यु बाल मरण कहलाती है। संसार में ऐसे भी जीव है जो अपने मृत्यु को महोत्सव बना देते हैं। अंत समय को निकट जानकार संसार के सारे पदार्थों से निवृत्त हो जाते हैं, संथारा संलेखना ग्रहण कर पंडित मरण को प्राप्त कर लेते हैं। ऐसे जीव अत्यंत भाग्यशाली जीव होते हैं जो सचेत अवस्था में संथारा ग्रहण करते हैं। मृत्यु से कोई भी नहीं बच सकता है। शास्त्रों में कहा गया है कि मृत्यु को तो स्वयं भगवान भी नहीं रोक सकते हैं इसलिए ज्ञानीजन कहते हैं कि मरो तो ऐसे मरो कि कभी दोबारा जन्म-मरण ना करना पड़े। प्रारम्भ में लोकेशमुनि ने भी प्रेरक उदबोधन दिया। साध्वी पुनीतज्योति की मंगल उपस्थिति रही। संघ मंत्री मोतीलाल ढेलडिय़ा ने संचालन किया।

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