जैन धर्म में ऐसे सभी महापुरुषों को वन्दनीय माना गया है। जैन धर्म इस ब्रह्माण्ड की अभिव्यक्ति, निर्माण या रखरखाव के लिए जिम्मेदार किसी निर्माता ईश्वर या शक्ति की धारणा को खारिज करता है। जैन दर्शन के अनुसार, यह लोक और इसके छह द्रव्य हमेशा से है और इनका अस्तित्व हमेशा रहेगा।
आचार्य ने कहा कि जैन धर्म के अनुसार इस सृष्टि को किसी ने नहीं बनाया। देवी, देवता जो स्वर्ग में हैं वह अपने अच्छे कर्मों के कारण वहां हंै और भगवान नहीं माने जा सकते।
जैन धर्म के अनुसार हर आत्मा का असली स्वभाव भगवंता है और हर आत्मा में अनंत दर्शन, अनंत शक्ति, अनंत ज्ञान और अनंत सुख है। आत्मा और कर्म पुद्गल के बंधन के कारण यह गुण प्रकट नहीं हो पाते। सम्यक् दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक् चरित्र के माध्यम से आत्मा के इस राज्य को प्राप्त किया जा सकता है।