यह पिछले कई वर्षों से वैज्ञानिकों के लिए एक चुनौती बना हुआ था। वैज्ञानिकों की टीम ने डेंगू वायरस के चार अलग-अलग रूपों में से एक महत्वपूर्ण वायरल प्रोटीन के एक हिस्से का चयन कर इस वैक्सीन कैंडिडेट को विकसित किया। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह डेंगू के विभिन्न वायरल वेरिएंट के खिलाफ प्रभावी होगा।
दरअसल, डेंगू चार अलग-अलग वायरल एंटीजन हैं। शोधकर्ताओं ने पाया कि वायरस के चारों सीरोटाइप के भीतर आनुवांशिक भिन्नताएं थीं। इसलिए चारों सीरोटाइप के एक हिस्से ‘इनवेलप प्रोटीन डोमेन-3’ (इडी-3) का चुनाव कर एक सर्वसम्मत अनुक्रम बनाया जो सभी में समान है। इसके अतिरिक्त डेंगू के सबसे अधिक वायरल वैरिएंट ‘डीइएनवी-2’ के एक प्रोटीन ‘एनस-1’ का भी चयन किया। यह वैरिएंट मरीजों में आंतरिक रक्तस्राव और रक्तचाप में गिरावट के साथ गंभीर डेंगू का कारण बनता है।
मजबूत होगी प्रतिरक्षा प्रणाली
टीआइएफआर के वैज्ञानिक एवं परियोजना निदेशक डॉ अरुण शंकरदास ने कहा कि पारंपरिक टीकों में पूरे ‘इनवेलप प्रोटीन’ का उपयोग किया जाता है जिससे ‘एडीई’ का निर्माण होता है। एडीई के कारण वायरल एंटीजन कम प्रभावशाली एंटीबॉडी के साथ बंधने लगते है और वायरस अधिक प्रभावी हो जाता है। एडीई से बचने के लिए सभी चारों सीरोटाइप में से केवल ‘इडी-3’ का उपयोग किया गया है। वहीं, एनएस-1 का भी इस्तेमाल किया है जिससे ‘टी’ कोशिकाएंं और ‘बी’ कोशिकाएं उत्पन्न होती हैं। ‘टी’ और ‘बी’ कोशिकाएं सफेद रक्त कोशिकाएं हैं जो प्रतिरक्षा प्रणाली का हिस्सा होती हैं और वायरल एंटीजन से लड़ती हैं।
कई संस्थानों का सहयोग
एनसीबीएस के प्रोफेसर सुधीर कृष्णा ने कहा ‘हम जानते हैं कि वायरस के चार सीरोटाइप्स होते हैं। लेकिन, हमने पाया कि सीरोटाइप्स में आनुवांशिक भिन्नताएं थीं। किसी भी अनुक्रम में 6 फीसदी से ज्यादा अंतर होने पर उसे अलग जीनोटाइप माना जाता है। ऐसे में टीम ने एक सर्वसम्मत अनुक्रम तैयार किया, जो सभी जीनोटाइप्स में समान था।’ एनसीबीएस के अलावा इस परियोजना में भारतीय विज्ञान संस्थान (आइआइएससी), बेंगलूरु स्थित सेंट जॉन्स मेडिकल कॉलेज, मुंबई स्थित कस्तूरबा अस्पताल, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) जोधपुर, एम्स दिल्ली और राजीव गांधी जैव प्रौद्योगिकी केंद्र तिरुवनंतपुरम का भी सहयोग रहा।