इस अवसर पर आचार्य ने कहा कि निष्ठा व नैतिकता ट्रस्टी पद पर आरूढ़ होने के बाद और बढऩी चाहिए, कर्तव्यों का पालन हर हाल में होना चाहिए। कर्तव्य प्राप्त कार्यों को श्रद्धा व सफलता पूर्वक करने की क्रिया है। कारण के साथ कार्य को ईमानदारी, भक्ति निष्ठा औचित्य और नियमित रूप से पूर्ण करना ही सार्थक जीवन का उद्देश्य एवं कर्तव्य होता है।
कर्तव्य मानव जीवन का अनिवार्य गुण है। हमारे कर्तव्य ही हमारे ऋण हैं जिनका भुगतान हमारे लिए आवश्यक है।
आचार्य ने कहा कि हमें कर्तव्य के प्रति आलस्य की भावना नहीं रखनी चाहिए। कर्तव्यों से पलायन नहीं करना चाहिए।
आचार्य ने कहा कि हमें कर्तव्य के प्रति आलस्य की भावना नहीं रखनी चाहिए। कर्तव्यों से पलायन नहीं करना चाहिए।