
सरकारी मेडिकल कॉलेजों में केंद्र और राज्य सरकार के विभिन्न कोटे में कम शुल्क पर दाखिला मिल जाता है मगर निजी मेडिकल कॉलेजों में यह फीस काफी ज्यादा होती है। प्रबंधन (ओपन) कोटे की सीटों में फीस और भी ज्यादा होती है। देश में निजी मेडिकल कॉलेजों में पढ़ाई का खर्च 30 लाख से डेढ़ करोड़ रुपए तक आता है जबकि यूक्रेन जैसे देशों में 25-30 लाख रुपए में पढ़ाई पूरी हो जाती है। दिसम्बर 2021 में लोकसभा में दिए सरकार के आंकड़ों के मुताबिक शैक्षणिक वर्ष 2018-19 में 274 और 2019-20 में 273 एमबीबीएस सीटें रिक्त रह गई। जानकारों का कहना है कि सीटों के रिक्त रहने के पीछे अधिक शुल्क भी एक कारक है। हालांकि, एनएमसी ने अगले सत्र से निजी मेडिकल कॉलेजों को भी 50 प्रतिशत सीटें संबंधित राज्य या केंद्र शासित प्रदेश की सरकारी सीटों के समान शुल्क पर उपलब्ध कराने के लिए कहा है।

देश के मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (एनइइटी यूजी) उत्तीर्ण करना अनिवार्य है। वर्ष 2021 में 15.44 लाख से अधिक विद्यार्थियों ने एनइइटी की परीक्षा दी थी जिसमें से 8.70 लाख से ज्यादा उत्तीर्ण हुए जबकि शैक्षणिक वर्ष 2020-21 में देश के 562 मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस की 84,649 सीटें ही उपलब्ध थी। यानी, एमबीबीएस की एक सीट के लिए 19 दावेदार थे। वर्ष 2020 में 13.66 लाख छात्रों ने एनइइटी दी थी जिसमें से 7.71 लाख उत्तीर्ण हुए थे। हर साल करीब 7-8 लाख विद्यार्थी चिकित्सा पाठ्यक्रमों के लिए योग्य होने के बावजूद दाखिला पाने से वंचित रह जाते हैं। जानकारों का कहना है कि इनमें से जिन छात्रों का परिवार आर्थिक तौर पर सक्षम होता है वे विदेश में पढ़ाई का विकल्प चुनते हैं। राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (एनएमसी) की वेबसाइट पर शुक्रवार को उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक देश के 605 मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस की 90,825 सीटें हैं।
निजी क्षेत्र पर टिकी उम्मीदें
जानकारों का कहना है कि देश में निजी मेडिकल की पढ़ाई महंगा होने का कारण सीटों की सीमित संख्या है। पिछले कुछ सालों के दौरान सीटों की संख्या बढ़ी है मगर यह मांग के अनुपात में काफी कम है। दिसम्बर 2021 में सरकार ने लोकसभा को बताया था कि एनएमसी के आंकड़ों के मुताबिक 2014 से 2021 के बीच देश में 209 मेडिकल कॉलेजों को मंजूरी दी गई। इसमें से 132 सरकारी और 77 निजी क्षेत्र के थे। वर्ष 2014 से पहले एमबीबीएस की 51,348 सीटें थी जो 72 प्रतिशत वृद्धि के साथ दिसम्बर 2021 में 88,120 हो गई। स्नातकोत्तर की सीटें भी इस अवधि में 31,185 से 78 प्रतिशत बढ़कर 55,595 हो गई।
जानकारों का कहना है कि देश में निजी मेडिकल की पढ़ाई महंगा होने का कारण सीटों की सीमित संख्या है। पिछले कुछ सालों के दौरान सीटों की संख्या बढ़ी है मगर यह मांग के अनुपात में काफी कम है। दिसम्बर 2021 में सरकार ने लोकसभा को बताया था कि एनएमसी के आंकड़ों के मुताबिक 2014 से 2021 के बीच देश में 209 मेडिकल कॉलेजों को मंजूरी दी गई। इसमें से 132 सरकारी और 77 निजी क्षेत्र के थे। वर्ष 2014 से पहले एमबीबीएस की 51,348 सीटें थी जो 72 प्रतिशत वृद्धि के साथ दिसम्बर 2021 में 88,120 हो गई। स्नातकोत्तर की सीटें भी इस अवधि में 31,185 से 78 प्रतिशत बढ़कर 55,595 हो गई।

वर्ष कॉलेज - सीटें
2013-14 : 387 - 51,348
2014-15 : 404 - 54,348
2015-16 : 422 - 57,138
2016-17 : 472 - 65,183
2017-18 : 479 - 67,218
2018-19 : 499 - 70,012
2019-20 : 539 - 80,312
2020-21 : 558 - 83,275
2021-22 : 596 - 88,120
विदेशी डिग्री का मोह भी मेडिकल की पढ़ाई के लिए यूक्रेन, चीन, रूस, जॉर्जिया और फिलीपींस जैसे देशों की लोकप्रियता की ओर इशारा करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने २६ फरवरी को एक वेबिनार में कहा था कि भारतीय छात्र छोटे देशों में अध्ययन के लिए जा रहे हैं, विशेषकर चिकित्सा शिक्षा में। प्रधानमंत्री ने निजी क्षेत्र से चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर प्रवेश करने का आग्रह किया। हालांकि, शिक्षाविदों का कहना है कि सिर्फ निजी क्षेत्र के प्रवेश से ही समस्या हल नहीं हो जाएगी। एक कंसंल्टेंसी फर्म के प्रमुख पॉल चेल्लाकुमार ने कहा कि इंजीनियरिंग और प्रबंधन शिक्षा के अनुभवों को देखते हुए बेहतर व प्रभावी नियमन की जरुरत होगी ताकि शुल्क नियंत्रण के साथ पढ़ाई की गुणवत्ता बनी रहे। एक अन्य कंसल्टेंट अभिनव एमके ने कहा कि छोटे शहरों से आने वाले छात्रों में कम खर्च में विदेशी डिग्री का मोह भी उन्हें छोटे देशों में पढ़ाई के लिए आकर्षित करता है।
एमबीबीएस सीटों के मामले में कर्नाटक दूसरे स्थान पर
एमबीबीएस सीटों के मामले में कर्नाटक देश में दूसरे स्थान पर है। राज्य के 63 मेडिकल कॉलेजों में की 9,795 सीटें हैं जबकि महाराष्ट्र के 61 कॉलेजों में 9,600, तमिलनाडु के 69 कॉलेजों में 10,625, तेलंगाना के 34 कॉलेजों में 5,340, आंध्र प्रदेश के 31 कॉलेजों में 5,210 और उत्तर प्रदेश के 67 कॉलेजों में 8,678 सीटें हैं।
एमबीबीएस सीटों के मामले में कर्नाटक देश में दूसरे स्थान पर है। राज्य के 63 मेडिकल कॉलेजों में की 9,795 सीटें हैं जबकि महाराष्ट्र के 61 कॉलेजों में 9,600, तमिलनाडु के 69 कॉलेजों में 10,625, तेलंगाना के 34 कॉलेजों में 5,340, आंध्र प्रदेश के 31 कॉलेजों में 5,210 और उत्तर प्रदेश के 67 कॉलेजों में 8,678 सीटें हैं।

देश या विदेश में कहीं भी मेडिकल की पढाई के लिए एक ही परीक्षा है एनइइटी। इसे पास किए बिना कहीं भी मेडिकल कॉलेज में दाखिला नहीं मिलेगा। इसमें उत्तीर्ण कोई भी अभ्यार्थी एमबीबीएस पाठ्यक्रम में दाखिले की योग्यता रखता है। भारत में एनइइटी में 150 नंबर लाने वाले छात्र का भी डेढ़ करोड़ रुपए फीस देने पर एमबीबीएस में एडमिशन हो जाता है और और 580 नंबर वाले योग्य बच्चे का भी दाखिला नहीं होता है। आर्थिक कारणों के अलावा भी इसमें कई कारक होते हैं। सीटों की मांग और उपलब्धता में अंतर सबसे बड़ा कारण है।
- प्रजेश कुमार झा, ग्लोबल करियर काउन्सलर