बेंगलूरु. कोविड-19 (Covid -19) के मरीजों के उपचार को लेकर चिकित्सक आपस में बंट गए हैं। एक के अनुसार मरीजों का उपचार एक ही सरकारी अस्पताल में होना चाहिए तो तो दूसरे के अनुसार पसंदीदी अस्पताल में उपचार मरीजों का हक है जिससे उसे वंचित नहीं किया जा सकता है। चिकित्सा शिक्षा मंत्री ने भी हामी भरी थी की चाह अनुसार मरीज और परिजन अस्पताल चुन सकेंगे। दूसरी ओर सरकारी अस्पतालों में उपचार करा रहे कई मरीज व परिजन बुनियादी सुविधाओं के अभाव की शिकायत करते आ रहे हैं। लेकिन सरकारी अस्पतालों के सामने भी तमाम चुनौतियां हैं। कोविड-19 के ज्यादातर मरीजों का उपचार सरकारी अस्पतालों के जिम्मे हैं। सात मरीज ठीक होकर घर लौट चुके हैं।
केंद्रीय स्वाथ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से हाल ही में कोविड-19 के सभी मरीजों को किसी विशेष अस्पताल या स्टैंडअलोन अस्पताल में शिफ्ट करने के दिशा-निर्देश ने निजी अस्पतालों के बीच असमंजस की स्थिति पैदा कर दी है।
हालांकि कई चिकित्सकों का कहना है कि अस्पताल के किसी एक वार्ड में ऐसे मरीजों के उपचार से अन्य मरीजों में भी संक्रमण का खतरा रहेगा। इसलिए सरकार यो तो अलग अस्पताल में मरीजों का उपचार करे या फिर अलग प्रवेश व निकास द्वार वाले अस्पताल के किसी एक भवन को चिन्हित करे।
एक बड़े अस्पताल के पल्मोनॉजिस्ट के अनुसार प्रदेश सरकार ने सबसे पहले कुछ सरकारी अस्पतालों के साथ दो निजी अस्पतालों को भी उपचार के लिए चिन्हित किया था। लेकिन बाद में विक्टोरिया और बोरिंग एंड लेडी कर्जन अस्पताल को कोविड-19 के मरीजों के उपचार के लिए चुना गया। कुछ चिकित्सकों ने प्रधानमंत्री से अपील की है कि मरीजों को अस्पताल चुनने का हक दिया जाए। पहले से भर्ती मरीजों को शिफ्ट करना उचित नहीं होगा। हालांकि चिकित्सा शिक्षा मंत्री के. सुधाकर की मानें तो पहले से भर्ती मरीजों को शिफ्ट करने की योजना नहीं है।
एक सरकारी चिकित्सक के अनुसार मरीजों को सरकारी अस्पतालों में ही उपचार कराना चाहिए। जहां, इस महामारी से निपटने व उपचार के तमाम साधन उपलब्ध हैं। सरकारी और निजी, दोनों अस्पतालों में उपचार होने से तालमेल में कई स्तरों पर दिक्कतें आएंगी।