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कोरोना : आइवरमेक्टिन के इस्तेमाल को लेकर बंटे निजी, सरकारी चिकित्सक

locationबैंगलोरPublished: May 13, 2021 10:36:06 am

Submitted by:

Nikhil Kumar

विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) ने इस दवा के उपयोग को लेकर चेतावनी दी है।

कोरोना : आइवरमेक्टिन के इस्तेमाल को लेकर बंटे निजी, सरकारी चिकित्सक

– कोविड मरीजों में उपयोग पर गहन शोध की जरूरत
– वैज्ञानिक आधार का अभाव
– कर्नाटक सरकार खरीद रही है 10 लाख गोली

बेंगलूरु. कोरोना के उपचार में जिन दवाओं का इस्तेमाल किया जा रहा है उनमें एंटी पैरासाइटिक ड्रग आइवरमेक्टिन (Ivermectin) भी शामिल है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) ने इस दवा के उपयोग को लेकर चेतावनी दी है। देश के कई राज्यों के साथ विदेशों में भी इस दवा का उपयोग हो रहा है।

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की कर्नाटक इकाई (Karnataka unit of National Health Mission) ने आरटी-पीसीआर रिपोर्ट का इंतजार कर रहे लक्षण वाले लोगों को एंटी पैरासाइटिक ड्रग आइवरमेक्टिन के साथ विटामिन-सी व जिंक की (vitamin C and zinc) गोली शुरू करने की सलाह दी है। लेकिन, आइवरमेक्टिन के उपयोग को लेकर निजी व सरकारी चिकित्सक एक मत नहीं हैं। सरकार की ओर से मरीजों को दिए जाने वाले होम आइसोलेशन (Home Isolation) किट में भी यह दवा शामिल है। सरकार ने इस गोली के 10 लाख खुराक की खरीद के लिए आर्डर दिए हैं। उपमुख्यमंत्री व कोविड टास्क फोर्स के प्रमुख डॉ. सी. एन. अश्वथ नारायण के मुताबिक नए आर्डर की आपूर्ति 14 मई से शुरू होगी।

कोलंबिाया एशिया रेफरल अस्पताल के डॉ. प्रदीप रंगप्पा ने बताया कि ठोस वैज्ञानिक आधार व क्लिनिकल ट्रायल की जरूरत है। उनके अनुसार आइवरमेक्टिन प्रभावी नहीं है। आइवरमेक्टिन लेने की सलाह उनकी समझ से बाहर है।

राज्य कोविड विशेषज्ञ समिति के सदस्य राज्य पल्मोनोलॉजिस्ट संघ के अध्यक्ष डॉ. के. एस. सतीश ने बताया कि कोई भी वरिष्ठ पल्मोनोलॉजिस्ट इस दवा की सिफारिश नहीं करेगा। इसके उपयोग का समर्थन करने के लिए पर्याप्त डेटा नहीं है। आइवरमेक्टिन अमरीका, ब्रिटेन या ऑस्ट्रेलिया में भी कोविड की मानक देखभाल का हिस्सा नहीं है। प्री-क्लिनिकल स्टडीज में कोविड के इलाज में इसकी प्रभाविता को लेकर वैज्ञानिक आधार, कोई क्लीनिकल सुरक्षा या प्रभावकारिता नहीं है।

राज्य चिकित्सीय समिति के प्रमुख व राजीव गांधी यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंसेस के कुलपति डॉ. एस. सचिदानंद का कहना है कि आखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (All India Institutes of Medical Sciences -एम्स), भुवनेश्वर ने कोविड मरीजों में आइवरमेक्टिन के उपयोग पर अध्ययन किया है। अध्ययन में 372 स्वास्थ्य देखभाल कार्यकर्ताओं को शामिल किया गया। नतीजों में सामने आया है कि आइवरमेक्टिन कोविड संक्रमण को कम करने में प्रभावी है। ऑस्ट्रेलिया में किए गए एक इन-विट्रो अध्ययन में भी दवा को प्रभावी बताया गया है।

इस पर डॉ. प्रदीप रंगप्पा का कहना है कि इन-विट्रो अध्ययन गत वर्ष तीन अप्रेल को एंटीवायरल रिसर्च जर्नल में प्रकाशित हुई थी। शोधकर्ताओं ने पाया कि 48 घंटे में कोशिकाओं में कोरोना वायरस की मौजूदगी में कमी आई। डॉ. रंगप्पा के अनुसार इन-विट्रो एक चिकित्सा अध्ययन या प्रयोग को संदर्भित करता है जो प्रयोगशाला में एक परीक्षण ट्यूब आदि उपकरणों में किया जाता है। अध्ययन इन-विवो होनी चाहिए थी। इन-विवो शब्द एक चिकित्सा परीक्षण, प्रयोग या प्रक्रिया को संदर्भित करता है जो एक जीवित जीव (प्रयोगशाला जीव या मानव) पर किया जाता है।

डब्ल्यूएचओ ने चेताया
विश्व स्वास्थ्स संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भी इस दवा का प्रयोग न करने की बात कही है। आइवरमेक्टिन मुंह के जरिए दी जाने वाली ऐसी दवा है जिसका उपयोग पैरासाइटिक संक्रमण को ठीक करने के लिए होता है। वर्ष 1981 में इस दवा का मेडिकल इस्तेमाल शुरू हुआ।

डब्ल्यूएचओ के वैज्ञानिकों के अनुसार किसी नए लक्षण में जब कोई दवा इस्तेमाल करते हैं तो उसकी सुरक्षा और असर का ध्यान रखना जरूरी है। क्लीनिकल ट्रायल को छोड़कर कोरोना मरीजों को यह दवा नहीं देनी चाहिए।

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