साध्वी ने कहा कि कोई श्रेष्ठ है तो वह अपने कर्तव्य और कर्मों द्वारा श्रेष्ठ है। मानव में मानवता नहीं तो मानव होना व्यर्थ है। ऊंच-नीच, जात-पांति यह सब मानव मन का भ्रम है।
उन्होंने कहा कि आज हमने जैन शब्द को धर्म और जाति बना दिया है। आगम में जैन शब्द कहीं पर नहीं आया, जिन शब्द आया है। जिन धर्म केवल एक विचारधारा है, सोच है, और जो उस विचारधारा को सही समझ कर उस पर स्वयं चल पड़ता है और दूसरों को चलने की प्रेरणा देता है, बस वही जैन कहलाता है।