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बैंगलोर

दूसरों में दोष निकालना बड़ा अवगुण: देवेंद्रसागर

निंदकों को संतुष्ट करना संभव नहीं

बैंगलोरJul 09, 2020 / 02:50 pm

Santosh kumar Pandey

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बेंगलूरु. शंखेश्वर पाश्र्वनाथ जैन संघ राजाजीनगर में आचार्य देवेंद्रसागर ने प्रवचन में कहा कि सदैव दूसरों में दोष ढूंढ़ते रहना मानवीय स्वभाव का एक बड़ा अवगुण है। दूसरों में दोष निकालना और खुद को श्रेष्ठ बताना कुछ लोगों का स्वभाव होता है।
उन्होंने कहा कि परनिंदा में काफी आनंद मिलता है, लेकिन बाद में निंदा करने से मन में अशांति व्याप्त होती है और हम हमारा जीवन दु:खों से भर लेते हैं। लोग अलग-अलग कारणों से निंदारस का पान करते हैं। कुछ सिर्फ अपना समय काटने के लिए किसी की निंदा में लगे रहते हैं तो कुछ खुद को किसी से बेहतर साबित करने के लिए निंदा को अपना नित्य का नियम बना लेते हैं। निंदकों को संतुष्ट करना संभव नहीं है।
इसलिए समझदार इंसान वही है जो उथले लोगों द्वारा की गई विपरीत टिप्पणियों की उपेक्षा कर अपने काम में तल्लीन रहता है। प्रतिवाद में व्यर्थ समय गंवाने से बेहतर है अपने मनोबल को और भी अधिक बढ़ाकर जीवन में प्रगति के पथ पर आगे बढ़ते रहें।
किसी की आलोचना से आप खुद के अहंकार को कुछ समय के लिए तो संतुष्ट कर सकते हैं किन्तु किसी की काबिलियत, नेकी, अच्छाई और सच्चाई की संपदा को नष्ट नहीं कर सकते। जो सूर्य की तरह प्रखर है, उस पर निंदा के कितने ही काले बादल छा जाएं किन्तु उसकी प्रखरता, तेजस्विता में कमी नहीं आ सकती।
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