उन्होंने कहा कि नाट्यकला प्राचीन समय से चली आ रही है। यह कला शाश्वत है। आज लुप्त होने के कगार पर खड़े रंगमंच को बचाना हमारा कर्तव्य है। दर्शकों को समय निकाल कर नाटकों को जरूर देखना चाहिए। नाटकों से हमें अनेक संदेश मिलते हैं। महास्वामी ने कहा कि सिनेमा एवं टीवी की चकाचौंध ने नाटकों की चमक को थोड़ा फीका कर दिया था। इससे थोड़े समय के लिए नाटकों पर गहरा संकट भी छाया। इससे नाटक देखने वाले दर्शकों की संख्या में कमी आ गई थी, परन्तु समय के साथ नाटकों में भी तकनीक बदलाव आया और फिर से नाटक देखने वाले दर्शकों की संख्या में बढोतरी हो रही हैं। जो भी कलाकार रंगमंच में कदम रखता है, रंगमंच उसकी रगों में बस जाता है।
कलाकार कभी रंगमंच से दूर नहीं हो सकता। विजय महांतेश संस्थानमठ के मठाधीश गुरूमहांतस्वामी ने अपने संबोधन में यह कहा कि इलकल शहर कलाकारों का मायका है। यहां के अनेक कलाकारों ने रंगमंच मेंं नाम व शौहरत पाई है। यहां के लोग सदैव कला की कद्र करते हुए प्रोत्साहित करते हैं।
उन्होंने कलाकारों को नसीहत देते हुए कहा कि नाटक की कथावस्तु ऐसी होनी चाहिए कि परिवार के सारे सदस्य साथ में बैठकर नाटक को देख सके। किसी भी प्रकार का व्यसन बुरी बला है इसलिए उस बला से दूर रहना चाहिए। मंच पर महांततीर्थ, शिरूर के मठाधीश बसवलिंग महास्वामी उपस्थित थे। वचन प्रार्थना नागराज बसूदे ने प्रस्तुत की। रंगगीत विधाश्री गन्जी ने गाया। स्वागत व्यवस्थापक फियाज बीजापुर ने किया। संचालन मुत्तुराज दंडीन ने किया। गुरूलिंगय्यास्वामी हिरेमठ ने आभार जताया। पल्लक्की पुट्टव्वा नाटक का पहला प्रदर्शन काफी प्रभावित करने वाला रहा। पल्लक्की पुट्टव्वा के किरदार को कलाकार ज्योति मेंगलूर ने जीवित कर दिया।
उनकी अदाकारी ने दर्शकों को तीन घंटे तक बांधे रखा। उनके पिता साहूकार बेट्टप्पा की भूमिका में भरतराज तालीकोटी, उनके खास मित्र कादर का किरदार निभाने वाले कलाकार की अदाकारी लाजवाब थी। बीच-बीच में अपनी अद्भुत अदाकारी से दशकों को गुदगुदाने वाले बूढ़ा पति एवं जवान पत्नी का पात्र निभाने वाले एवं देसी वैद्य तथा उसके साथी ने अपने पात्रों को बखूबी निभाया। नाटक दर्शकों का मनोरंजन करने मेंं सफल रहा।