कुछ वर्ष पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड आदि राज्यों से बेंगलूरु में आए आइटी और कॉरपोरेट पेशेवरों ने अपनी परंपरागत संस्कृति से जुड़े रहने के लिए दुर्गा पूजा की शुरुआत की। महज कुछ सदस्यों के साथ शुरू हुई पूजा अब भव्य रूप ले चुकी है। हर वर्ष स्पंदन के देवी दुर्गा महोत्सव में हजारों श्रद्धालु शामिल होते हैं और देवी पूजन दर्शन का लाभ लेते हैं।
स्पंदन के सदस्य देवाशीष कर बताते हैं कि हम दुर्गा पूजा के माध्यम से कोई न कोई जागरुकता संदेश भी देने की कोशिश करते हैं। इसका पहला संदेश तो यही है कि आधुनिक जीवन शैली में इस महोत्सव के माध्यम से हम अपनी मौजूदा और नई पीढी को बेंगलूरु जैसे शहर में परंपरागत रूप से अपनी लोक संस्कृति से जोडऩे में सफल हुए हैं।
इसी प्रकार जलवायु परिवर्तन की चुनौती झेल रही दुनिया में हम दुर्गा पूजा के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरुक करने की कोशिश करते हैं। इस बार की पूजा का थीम भी इसी पर आधारित है और पूजा पांडाल तथा प्रतिमा का निर्माण इसी संदेश को देने वाला है। देवी की प्रतिमा नाव पर विराजित रहेगी जो पर्यावरण संरक्षण का संदेश है।
प्रियंका देवनाथ ने बताया कि पष्ठी से दशमी के बीच चलने वाले आयोजन हमारी कोशिश लोक परंपराओं को जीवंत करने की रहती है। इसलिए बंगाल से पुजारियों और ढाक-ढोल बजाने वालों को बुलाया जाता है। मान्यता है कि ढाक की आवाज से पूजा का वातावरण तैयार किया जाता है। बंगाल में दुर्गा पूजा में ढाक का विशेष महत्व है।
इसी प्रकार विजयदशमी को मां की विदाई से पहले घट विसर्जन के दौरान धनुची नाच होता है। इस परंपरागत नाच के बाद मां दुर्गा की विदाई पर सुहागिनें एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं जिसे सिंदूर खेला कहा जाता है। स्पंदन के अध्यक्ष सुबीर कुमार भट्टाचार्य, सचिव अशुंमान सरकार आदि के नेतृत्व में इस बार भी महोत्सव को भव्य और परंपरागत शैली में आयोजित करने के लिए तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है। इस बार के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में विशेष नाट्य प्रस्तुतियां होंगी और रवीन्द्र संगीत सुनने को मिलेगा। इसी प्रकार बच्चों के मनोरंजन के लिए फैंसी ड्रेस का आयोजन होगा।