scriptबंगाल की मिट्टी से बेंगलूरु में बनती हैं दुर्गा प्रतिमाएं | Durga statues are made in Bengal from Bengal soil | Patrika News

बंगाल की मिट्टी से बेंगलूरु में बनती हैं दुर्गा प्रतिमाएं

locationबैंगलोरPublished: Oct 09, 2018 06:32:37 pm

Submitted by:

Priyadarshan Sharma

शारदीय नवरात्रि कल से: हर वर्ष पश्चिम बंगाल से दर्जनों मूर्तिकार बेंगलूरु में दुर्गा प्रतिमा बनाने आते हैं
प्रतिमाओं के निर्माण और रूप सज्जा में दिखती है संस्कृति की झलक
 

Durga

बंगाल की मिट्टी से बेंगलूरु में बनती हैं दुर्गा प्रतिमाएं

प्रियदर्शन शर्मा


बेंगलूरु. शारदीय नवरात्र बुधवार से शुरू हो रहा है और बेंगलूरु में देवी दुर्गा की मूर्तियों को मूर्त रूप देने के लिए इन दिनों बंगाल से आए मूर्तिकार दिन-रात काम में जुटे हुए हैं। दुर्गा पूजा में पूजी जाने वाली मां दुर्गा की भव्य मूर्तियों का एक खास महत्व होता है। मूर्तियों के निर्माण में कई प्रकार की पौराणिक महत्ता और परंपराओं का विशेष ध्यान रखा जाता है। इसलिए बेंगलूरु में दुर्गा पूजा आयोजन करने वाली अधिकांश संस्थाएं बंगाली मूर्तिकारों से बनी मूिर्त लेते हैं। एक अनुमान के मुताबिक में बेंगलूरू में करीब 300 संस्थाएं दुर्गा पूजा महोत्सव करती हैं।
बंगाली मूर्तिकारों की खासियत है कि वे प्रतिमाओं के निर्माण की कई सामग्री पश्चिम बंगाल से लेकर आते हैं जिसमें मिट्टी का एक हिस्सा भी शामिल होता है। जयमहल के पास दुर्गा प्रतिमा निर्माण करने कर रहे बंगाली मूर्तिकार चंद्रशेखर पाल ने बताया कि वे वर्ष-1991 से हर वर्ष बेंगलूरु में दुर्गा मूर्तियों के निर्माण के लिए आ रहे हैं। चंद्रशेखर इस वर्ष करीब 40 संस्थाओं के लिए प्रतिमा निर्माण कर रहे हैं।
इस बार उनके साथ पश्चिम बंगाल से करीब 18 अन्य कारीगर प्रतिमा निर्माण के लिए आए हैं। वे लोग काली पूजा (दीपावली) तक के लिए बेंगलूरु में रहकर प्रतिमाओं का निर्माण करेंगे। प्रतिमाओं की रूप सज्जा में विशेष बंगाली संस्कृति की झलक देखने को मिलती है। वे बताते हैं कि इसका कारण लोगों का अपने राज्य और संस्कृति से जुड़ाव है। बेंगलूरु में पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, ओडिशा, मध्यप्रदेश आदि राज्यों की दर्जनों संस्थाएं हर वर्ष दुर्गा महोत्सव मनाती हैं। पूजा के दौरान उन राज्यों की परंपरागत पूजन शैली और विधान देखने को मिलती है। इसलिए मूर्तिकारों की कोशिश रहती है कि वे मूर्तियों के निर्माण और शृंगार में भी उन राज्यों की सांस्कृतिक झलक पेश करें।

प्रतिमाओं पर चढता है गंगा मिट्टी का लेप
चदं्रशेखर ने कहा कि प्रतिमा निर्माण में मिट्टी का बेहद महत्व होता है। बेंगलूरु में जो मिट्टी मिलती है वह प्रतिमा निर्माण के लिए पूरी तरह से अनुरूप नहीं है, इसलिए प्रतिमाओं पर मिट्टी का जो बाहरी लेप चढाया जाता है उस मिट्टी को कोलकाता से लाया जाता है। इसे गंगा मिट्टी कहते हैं जो चिकनी और चिपचिपी होती है। प्रतिमा पर जब इस मिट्टी का लेप चढ़ाया जाता है तब सूखने के बाद भी इसमें दरार नहीं आता है जिससे प्रतिमा का आकर्षण बढ़ जाता है। सजावट के लिए विभिन्न सामग्री भी मुख्यत: कोलकाता से लाई जाती है जबकि बांस, धान का पुआल, मिट्टी का एक हिस्सा और कुछ अन्य सामग्री स्थानीय जगहों का उपयोग होता है।

रसायनिक रंगों का नहीं करते हैं प्रयोग
मूर्तिकारों के अनुसार वे प्रतिमा निर्माण में न तो पीओपी का इस्तेमाल करते हैं और ना ही रसायनिक रंगों का। मूर्तिकार विशेष किस्म के मिट्टीयुक्त पत्थरों को बारीककर उसमें रंग मिलाते हैं और प्रतिमाओं को रंगते हैं। इसलिए इन प्रतिमाओं को जब नदी, तालाब, झील आदि में विसर्जित किया जाता है तब जलस्रोतों को विशेष नुकसान नहीं पहुंचता है।

प्रतिमा निर्माण के रोचक पहलू
प्रतिमा निर्माण का एक बेहद रोचक पहलू यह है कि देवी दुर्गा की प्रतिमा की आंखें विशेष रूप से महालया अमावस्या को ही बनाई जाती हैं यानी अमावस्या की अंधेरी रात में देवी प्रतिमा को नेत्र ज्योति दी जाती है। मूर्तिकार प्रतिमा को कभी मापते नहीं हैं बल्कि वे अंदाज पर ही आर्डर के हिसाब से 6 फीट, 8 फीट, 10 फीट आदि की प्रतिमा बनाते हैं। इसी प्रकार मूर्ति का वास्तविक वजन कितना है, इससे भी मूर्तिकार अनजान होते हैं।

घट स्थापना कब करें
आश्विन शुक्ल प्रतिपदा के साथ शारदीय नवरात्रि का प्रारंभ मंगलवार को ही हो जाएगा लेकिन भारतीय पंचांग में उदित तिथि की मान्यता होने के कारण कलश स्थापना बुधवार सुबह होगी। हालांकि, बुधवार सुबह की द्वितीया तिथि भी प्रारंभ हो रही है। इसी तरह षष्ठी तिथि दो दिन पड़ रही है। 14 और 15 को षष्ठी तिथि होगी। पंडित तेज प्रकाश दवे ने कहा कि बुधवार को घट स्थापना के लिए प्रात: 6.15 से 8.45 बजे तक का समय उपयुक्त है। इसके अलावा प्रात: 11 से मध्याह्न 12 बजे के बीच भी शुभ वेला में पूजन और घट स्थापना की जा सकती है। महासप्तमी 16, अष्टमी 17, महानवमी 18 और विजयदशमी 19 अक्टूबर को होगा।
नौका पर आगमन, ऐरावत पर विदाई
शारदीय नवरात्रि में देवी के आगमन और प्रस्थान वाहन को भी काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। मान्यताओं के मुताबिक देवी पुराण में दिन के हिसाब से देवी के आगमन व प्रस्थान के वाहन तय होते हैं। इस बार मान्यताओं के मुताबिक देवी का आगमन स्वर्ण नौका पर होगा जबकि विदाई ऐरावत पर होगी। मान्यताओं के मुताबिक नौकाविहार की मुद्रा में रत्न जडि़त नौका पर देवी के आगमन को कामनापूरक माना जाता है जबकि सफेद हाथी पर आशीर्वाद मुद्रा में देवी की विदाई को ऐश्वर्य का परिचायक माना जाता है।

ट्रेंडिंग वीडियो