पाप और पुण्य तो सांसारिक धरातल में देखे जाते हैं। भगवान का नाम जपने वाले पाप-पुण्य से परे हो जाते हैं। उन्हें न तो पाप कर्म बांध सकते हैं न ही पुण्य कर्म, लोगों का यह भ्रम है कि भगवान के मंदिर में जाने से वे खुश होकर कृपा करते हैं। इसीलिए सतत उनका नाम स्मरण भी करते है नाम संकीर्तन में वह शक्ति है जिससे भगवान हर क्षण भक्त के निकट बने रहते हैं।
उन्होंने कहा कि संसार का सामान्य व्यक्ति भी अपने नाम की महत्ता सुनकर प्रसन्न हो जाता है, लेकिन परमात्मा का नाम संकीर्तन मनुष्य के जन्म जन्मान्तरों को पाप-तापों का शमन कर उसे निर्मल कर अपने धाम का अधिकारी बना देता है, लेकिन उनकी कृपा पाने के लिए भावपूर्ण प्रेम और साधना का होना जरूरी है। लोग महावीर और राम की पूजा तो करते हैं, मगर उनके गुणों और आदर्शों को जीवन में नहीं उतारते हैं।
उन्होंने कहा कि संसार का सामान्य व्यक्ति भी अपने नाम की महत्ता सुनकर प्रसन्न हो जाता है, लेकिन परमात्मा का नाम संकीर्तन मनुष्य के जन्म जन्मान्तरों को पाप-तापों का शमन कर उसे निर्मल कर अपने धाम का अधिकारी बना देता है, लेकिन उनकी कृपा पाने के लिए भावपूर्ण प्रेम और साधना का होना जरूरी है। लोग महावीर और राम की पूजा तो करते हैं, मगर उनके गुणों और आदर्शों को जीवन में नहीं उतारते हैं।
महावीर और राम का जीवन दूसरों के उद्धार के लिए था, लेकिन उनकी पूजा करने वाले लोग उनके एक भी गुण को जीवन में नहीं उतार पाते। भगवान मीठे भोग से नहीं, बल्कि भक्ति से मिलते हैं।