नहीं हो पाती एयरोसोलाइजेशन प्रक्रिया
आइआइएससी में कई विभागों के वैज्ञानिकों की टीम ने यह शोध किया। इस दौरान सांस लेने, छींकने अथवा खांसने से निकले कफ के छीटों के खिलाफ घरेलू मास्क की प्रभावकारिता का अध्ययन किया गया। दीपशिखा चक्रवर्ती ने बताया कि अध्ययन के दौरान हमने यह साबित किया बड़े ड्रॉपलेट (मोटे कफ के छींटे) के खिलाफ तीन लेयर वाले घरेलू कॉटन मास्क काफी प्रभावी हैं। अमूमन ये ड्रॉपलेट अलग-अलग व्यास के होते हैं और अलग-अलग गति से निकलते हैं। सबसे बड़ा खतरा यह होता है कि बड़े ड्रॉपलेट छोटी-छोटी बूंदों में विभाजित हो जाते हैं जिसे एयरोसोलाइजेशन कहते हैं। ये एक साथ कइयों को संक्रमित कर सकते हैं। लेकिन, अगर घरेलू कॉटन मॉस्क का उपयोग किया जाए तो एयरोसोलाइजेशन की प्रक्रिया रूक जाती है। महामारी के नियंत्रण में यह काफी कारगर है। इस साधारण मास्क है की प्रभावशीलता का अभी तक किसी ने अध्ययन नहीं किया था। हमने दिखाया कि जो बड़े ड्रॉपलेट है उनकी गति अलग-अलग होती है लेकिन, कॉटन फैब्रिक है उन्हें रोकने में काफी कारगर हैं।
आइआइएससी में कई विभागों के वैज्ञानिकों की टीम ने यह शोध किया। इस दौरान सांस लेने, छींकने अथवा खांसने से निकले कफ के छीटों के खिलाफ घरेलू मास्क की प्रभावकारिता का अध्ययन किया गया। दीपशिखा चक्रवर्ती ने बताया कि अध्ययन के दौरान हमने यह साबित किया बड़े ड्रॉपलेट (मोटे कफ के छींटे) के खिलाफ तीन लेयर वाले घरेलू कॉटन मास्क काफी प्रभावी हैं। अमूमन ये ड्रॉपलेट अलग-अलग व्यास के होते हैं और अलग-अलग गति से निकलते हैं। सबसे बड़ा खतरा यह होता है कि बड़े ड्रॉपलेट छोटी-छोटी बूंदों में विभाजित हो जाते हैं जिसे एयरोसोलाइजेशन कहते हैं। ये एक साथ कइयों को संक्रमित कर सकते हैं। लेकिन, अगर घरेलू कॉटन मॉस्क का उपयोग किया जाए तो एयरोसोलाइजेशन की प्रक्रिया रूक जाती है। महामारी के नियंत्रण में यह काफी कारगर है। इस साधारण मास्क है की प्रभावशीलता का अभी तक किसी ने अध्ययन नहीं किया था। हमने दिखाया कि जो बड़े ड्रॉपलेट है उनकी गति अलग-अलग होती है लेकिन, कॉटन फैब्रिक है उन्हें रोकने में काफी कारगर हैं।
बेधड़क करें घरेलू मास्क का उपयोग
इस अध्ययन से जुड़े प्रोफेसर सप्तर्षी बसु ने बताया कि इस अध्ययन की दूसरी महत्वपूर्ण बात है कि 70 से 80 बार धोने पर भी ये मास्क उतने ही कारगर होते हंैं। यानी, लोगों को एन-95 या सर्जिकल मास्क के पीछे भागने की जरूरत नहीं है। अगर घर के बने मास्क का उपयोग करें तो यह काफी प्रभावी होगा। यह छोटे ड्रॉपलेट बनने की प्रक्रिया को रोक देगा। लेकिन, मास्क तीन लेयर वाला होना चाहिए।
इस अध्ययन से जुड़े प्रोफेसर सप्तर्षी बसु ने बताया कि इस अध्ययन की दूसरी महत्वपूर्ण बात है कि 70 से 80 बार धोने पर भी ये मास्क उतने ही कारगर होते हंैं। यानी, लोगों को एन-95 या सर्जिकल मास्क के पीछे भागने की जरूरत नहीं है। अगर घर के बने मास्क का उपयोग करें तो यह काफी प्रभावी होगा। यह छोटे ड्रॉपलेट बनने की प्रक्रिया को रोक देगा। लेकिन, मास्क तीन लेयर वाला होना चाहिए।