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दिग्गज हारे, कांग्रेस ने मजबूत गढ़ गंवाए

locationबैंगलोरPublished: May 24, 2019 01:53:30 am

Submitted by:

Rajendra Vyas

मल्लिकार्जुन खरगे और केएच मुनियप्पा की लगातार जीत का सिलसिला भी थमा

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दिग्गज हारे, कांग्रेस ने मजबूत गढ़ गंवाए

बेंगलूरु. कर्नाटक में भाजपा की अब तक की सबसे बड़ी जीत को केवल मोदी की लहर नहीं बल्कि सुनामी के तौर पर देखा जा रहा है। अब तक मिले रुझानों में पार्टी ने ना केवल कांग्रेस बल्कि जनता दल-एस के दिग्गजों को हराया और अनेक मजबूत किले ध्वस्त कर डाले। लोकसभा चुनाव में गठबंधन के घटक दलों को फायदा कम नुकसान ही अधिक हुआ है।
इन चुनावों को कर्नाटक में कांग्रेस की अब तक की सबसे बड़ी हार के तौर पर देखा जा रहा है, क्योंकि अब से पहले कांग्रेस की किसी भी चुनाव में ऐसी दुर्गति कभी नहीं हुई। इन चुनावों में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एम. मल्लिकार्जुन खरगे की हार को पार्टी पचा नहीं पा रही है। गुलबर्गा सीट पर एक बार भाजपा के बसवराज पाटिल सेडम चुनाव जीते थे पर इसे छोड़कर अन्य सभी चुनावों में इस सीट पर कांग्रेस का कब्जा बना रहा था। इस बार डॉ. उमेश जाधव की मजबूत उम्मीदवारी के आगे खरगे की एक नहीं चली और भाजपा ने यह सीट कांग्रेस से छीन ली।
इसी तरह चिकबल्लापुर सीट पर पूर्व केन्द्रीय मंत्री एम. वीरप्पा मोइली की हार को भी कांग्रेस के लिए बड़े सदमे के तौर पर देखा जा रहा है। 2014 में इस सीट पर एचडी कुमारस्वामी तथा भाजपा के बच्चेगौड़ा के चुनाव लडऩे से वोक्कालिगाओं के वोट बंट गए थे और मोइली की जीत आसान हो गई थी, लेकिन इस बार इस सीट पर भाजपा के बच्चेगौड़ा व मोइली के बीच सीधे मुकाबला हुआ। इस जिले में येत्तिनहोले सिंचाई परियोजना को लागू करने के कोरे वादे करना मोईली को भारी पड़ा।
वहीं, ओल्ड मैसूरु जिले के कोलार लोकसभा क्षेत्र को कांग्रेस का अभेद्य किला माना जाता था। यहां से पूर्व केन्द्रीय मंत्री केएच मुनियप्पा लगातार सात बार चुनाव जीते थे, इस बार मुनियप्पा को करारी हार का सामना करना पड़ा। इसी तरह चामराजनगर सीट से तीन बार सांसद रह चुके कांग्रेस के आर. ध्रुवनारायण की कम अंतर से हार ने कांग्रेस की रही सही उम्मीदों पर भी पानी फेर दिया है। बीदर सीट से कांग्रेस ने इस बार पार्टी के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष ईश्वर खंड्रे को चुनाव मैदान में उतारकर जीत के सपने देखे, मगर इन चुनावों में भाजपा के मौजूदा सांसद भगवंत खूबा का जलवा कायम रहा और तमाम कोशिशों के बावजूद खंड्रे की हार को टाला नहीं जा सका।
तुमकूरु सीट से पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की हार भी कम चौंकाने वाली नहीं है। देवेगौड़ा को जिताने के लिए गठबंधन दलों के नेताओं ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी, लेकिन जमीनी स्तर पर दोनों दलों के कार्यकर्ताओं के बीच तालमेल नहीं बन पाने और पूर्व सांसद मुद्द हनुमेगौड़ा के समर्थकों का अपेक्षित समर्थन नहीं मिलने से देवेगौड़ा हार गए। जहां तक बल्लारी सीट का सवाल है तो उप चुनाव में इस सीट पर कांग्रेस के वीएस उग्रप्पा ने भाजपा की जे. शांता को हराकर बड़ी जीत दर्ज की थी, लेकिन इन लोकसभा चुनाव में कांग्रेस बल्लारी के किले को भी नहीं बचा सकी। इसी तरह मंड्या सीट से सत्तारूढ़ गठबंधन ने मुख्यमंत्री कुमारस्वामी के पुत्र निखिल को साझा उम्मीदवार बनाया। मगर जनादेश के आगे दोनों दलों के नेताओं की एक नहीं चली और सुमालता कामयाब रहीं। कांग्रेस को एकमात्र बेंगलूरु ग्रामीण सीट पर सफलता हासिल हुई है। यहां से मंत्री डीके शिवकुमार के भाई डीके सुरेश चुनाव जीतने में सफल रहे हैं। जद-एस को केवल हासन में जीत से संतोष करना पड़ा है।
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