करौली जिले के गंगापुर निवासी कुली राजेश योगी ने बताया कि रेलवे स्टेशन पर ट्रॉली बैग, एस्केलेटर, लिफ्ट
रेलवे ने फिर चोट की सुविधा होने के बाद यात्री अपना सामान खुद ही ढोना पसंद करता है। वह कुलियों को उस वक्त याद करता है जब एक से अधिक ट्रॉली बैग हों और बच्चे छोटे हों। उन्होंने बताया कि 10 वर्ष पूर्व वे करौली से यहां कुली का काम करने के लिए आए थे, जब प्रतिदिन की मजदूरी 500 रुपए व इससे अधिक हो जाती थी। अब 200 रुपए कमाने के लिए हर ट्रेन के चक्कर लगाने पड़ते हैं। वहीं करौली जिले के महावीरजी निवासी बबलू खान ने बताया कि बेंगलूरु में 70 फीसदी कुली 12वीं व इससे अधिक पढ़े लिखे हैं। रोजगार नहीं मिलने पर उन्होंने लाखों रुपए खर्च कर कुली का बिल्ला लिया है और यहां कुली का काम कर रहे हैं। लेकिन रेलवे के आधुनिकीकरण ने एक बार फिर चोट की है। रेलवे ने एस्केलेटर, लिफ्ट और इलेक्ट्रिक वाहन चलाकर कुलियों के रोजगार पर चोट की है। अब कुली दिन भार दौड़ धूप करने के बावजूद 300 रुपए भी नहीं कमा पाता है।