scriptरेलवे के आधुनिकीकरण कुलियों का रोजगार संकट में | Employment of the modernization of the railways in the crisis | Patrika News

रेलवे के आधुनिकीकरण कुलियों का रोजगार संकट में

locationबैंगलोरPublished: Dec 27, 2018 10:27:26 pm

Submitted by:

arun Kumar

दिन भर भाग दौड़ के बाद भी नहीं मिलता पूरा मेहनताना

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दक्षिण पश्चिम रेलवे में हैं 726 कुली, अकेले बेंगलूरु में 533

बेंगलूरु. रेलवे में बढ़ते आधुनिकीकरण के चलते कुलियों के रोजगार पर संकट गहरा गया है। कुलियों की मानें तो दिन भर ट्रेनों के पीछे भाग दौड़ करने के बावजूद बमुश्किल कुली 200 से 400 रुपए प्रतिदिन कमा पाते हैं। इससे घर परिवार चलाना मुश्किल हो रहा है। कुलियों ने अब रेलवे से चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी, गेंगमैन व अन्य काम पर रखने का आग्रह किया है। ताकि परिवार का पालन पोषण किया जा सके। रेल अधिकारियों की मानें तो उत्तर पश्चिम रेलवे के विभिन्न स्टेशनों पर 726 लोग कुली के रूप में काम कर अपने परिवार का पालन पोषण कर रहे हैं। रेलवे उनको सुविधा के नाम पर काफी कुछ देता है लेकिन ये कुलियों की मांग के आगे नाकाफी है। रेलवे ने यात्रियों की सुविधा को ध्यान में रखकर प्रत्येक प्लेटफार्म पर लिफ्ट, एस्केलेटर की सुविधा दी है। वहीं बुजुर्ग यात्रियों को लाने व ले जाने के लिए रेलवे स्टेशन परिसर में इलेक्ट्रिक वाहन की सुविधा मुहैया कराई है। इससे अब अधिकांश यात्री कुलियों को नहीं पकड़ते हैं। वहीं ट्रॉली बैग के चलन ने तो कुलियों का भार भी हल्का कर दिया है। इसके चलते युवा, महिला व बुजुर्ग तक सामान होने के बावजूद कुलियों का सामान उठाने का मौका तक नहीं देते। कुलियों ने बताया कि देश भर में कई लाख लोग कुली के रूप में काम कर अपना व अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं। लेकिन रेलवे का आध़ुनिकीकरण उनके लिए अभिशाप बनकर उभरा है। हाल ये है कि रेलवे स्टेशन पर अधिक व भारी सामान के लिए कुलियों को दी गई ट्रॉलियां धूल फांक रही हैं। यदा कदा ही इनका उपयोग हो पाता है।
यात्री अपना सामान खुद ही ढोना पसंद करता है


करौली जिले के गंगापुर निवासी कुली राजेश योगी ने बताया कि रेलवे स्टेशन पर ट्रॉली बैग, एस्केलेटर, लिफ्ट
रेलवे ने फिर चोट की सुविधा होने के बाद यात्री अपना सामान खुद ही ढोना पसंद करता है। वह कुलियों को उस वक्त याद करता है जब एक से अधिक ट्रॉली बैग हों और बच्चे छोटे हों। उन्होंने बताया कि 10 वर्ष पूर्व वे करौली से यहां कुली का काम करने के लिए आए थे, जब प्रतिदिन की मजदूरी 500 रुपए व इससे अधिक हो जाती थी। अब 200 रुपए कमाने के लिए हर ट्रेन के चक्कर लगाने पड़ते हैं। वहीं करौली जिले के महावीरजी निवासी बबलू खान ने बताया कि बेंगलूरु में 70 फीसदी कुली 12वीं व इससे अधिक पढ़े लिखे हैं। रोजगार नहीं मिलने पर उन्होंने लाखों रुपए खर्च कर कुली का बिल्ला लिया है और यहां कुली का काम कर रहे हैं। लेकिन रेलवे के आधुनिकीकरण ने एक बार फिर चोट की है। रेलवे ने एस्केलेटर, लिफ्ट और इलेक्ट्रिक वाहन चलाकर कुलियों के रोजगार पर चोट की है। अब कुली दिन भार दौड़ धूप करने के बावजूद 300 रुपए भी नहीं कमा पाता है।
डी ग्रुप में कुलियों को समायोजित करें

बेंगलूरु के अमजद ने बताया कि यहां शिक्षित कुलियों की संख्या ज्यादा है। रेलवे को चाहिए कि वह डी ग्रुप में कुलियों को समायोजित कर रोजगार दे। इससे बेरोजगार हो रहे कुलियों को रोजगार मिल सकेगा। कुली यजाद ने बताया कि वह दस वर्ष से कुली का काम कर रहा है। लेकिन अब हालात ज्यादा विकट हो गए हैं। रेलवे स्टेशन के सभी गेट पर आधुनिक सुविधा होने के कारण कुलियों को काम नहीं मिल रहा है। रेलवे से गेंंगमैन का काम देने की मांग कुलियों ने की है। सैयद ने बताया कि वह 17 वर्ष से काम कर रहा है। अब कुली के रूप में कमाना मुश्किल हो गया है। 12-13 घंटे ड्यूटी करने के बावजूद 250 से 300 रुपए कमा पाते हैं। ऐसे में परिवार चलाना मुश्किल हो गया है।
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