लेकिन हमें कुछ विलक्षण एवं अनूठा करने के लिए समझौतावादी नहीं होना चाहिए, समय के साथ-साथ परिस्थितियां बदल जाती हैं, लेकिन वास्तव में उन्हें आपको स्वयं ही बदलना होता है। सच्चाई यही है कि हर इंसान के लिए जिन्दगी हर पल एक नया अवसर होती है।
उन्होंने कहा कि जिन्दगी तो सभी जीते हैं, लेकिन यहां बात यह मायने नहीं रखती कि आप कितना जीते हैं, बल्कि लोग इसी बात को ध्यान में रखते हैं कि आप किस तरह और कैसे जीते हैं। जीवन में आधा दुख तो इसलिए उठाते फिरते हैं कि हम समझ ही नहीं पाते हैं कि सच में हम क्या हैं? क्या हम वही है जो स्वयं को समझते हैं? या हम वह हैं जो लोग समझते हैं।
व्यक्ति अपने जीवन को सफल और सार्थक बनाने के लिए समाज से जुडक़र जीता है, इसलिए समाज की आंखों से वह अपने आपको देखता है। साथ ही उसमें यह विवेक बोध भी जागृत रहता है मैं भी जो हूं, जैसा हूं इसका मैं स्वयं जिम्मेदार हूं।