हरेक को दौलतमंद होने का नशा चढ़ा है
बैंगलोरPublished: Nov 22, 2021 09:19:10 am
धर्मसभा का आयोजन
हरेक को दौलतमंद होने का नशा चढ़ा है
बेंगलूरु. महावीर स्वामी जैन श्वेेतांबर मूर्तिपूजक संघ त्यागराज नगर में विराजित आचार्य महेंद्रसागर सूरी ने कहा कि इंसान अपने जीवन में सुख की तलाश करते हैं। उनकी यही कोशिश होती है कि हम हमेशा सुखी रहें। मगर यदि करीब से देखो तो हमें तमाम दुनिया दुखी ही नजर आती है। हम समझते हैं कि जिन लोगों के पास पैसे और जिंदगी के आराम बहुत हैं। वह सुखी है मगर वास्तव में ऐसा नहीं है। असलियत में वे भी सुखी नहीं हंैं। दुनिया के तमाम आराम और सुख सुविधा के सामान हमारे शरीर को तो जरूर आराम दे सकते हैं। मगर हमारी आत्मा को नहीं। आजकल जिसे देखो उसे एक नशा चढ़ा है। नाम, दाम, रूप, यौवन, बल और तो और धर्म। यह सब नशे की वस्तुओं जैसी हो गई हैं। यह सारे नशे तो मद की श्रेणी में आते हैं पर वर्तमान जीवन शैली में शराब का नशा सिर चढक़र बोल रहा है। इस राह पर गरीब और अमीर सुख में हो तब भी और दुख में हो तब भी नशा करने लग गया। कुछ लोग कहते हैं कि शराब इसलिए पीते हैं कि ताजगी आ जाए कुछ अन्य का दावा है कि इससे हिम्मत बढ़ती है। कोई कहता है कि इससे दुख जाता है। अध्यात्म कहता है साहसी और समझदार व्यक्ति कभी ऐसा नशा नहीं करता। यह सब गलत लोगों के काम और तर्क हैं। अन्न के लिए कहा गया है कि यदि उसे देखकर नहीं खाएंगे तो वह आप को खा जाएगा। शराब तो हर हाल में पीने वाले को पी जाती है। जो नशा आपको निर्भय ना करे, वह नशा तो अपराध ही है। जिस नशे के उतरने के बाद पछतावा हो उसे पाप ही कहा जाएगा। धर्म की एवं विचारकों की दृष्टि से कहा है कि प्रभु का नाम बलकारी तीव्र शराब है। इसलिए सबसे बढिय़ा नशा है परमात्मा के नाम का नशा। जितना हम परमात्मा से जुड़ते हैं उतना अधिक हम स्वयं को जानने की स्थिति में आ जाते हैं। खुद को जानना बड़ी हिम्मत का काम है। दूसरे नशे लोग स्वयं को बुलाने के लिए करते हैं। यह डरपोक लोग ही करते हैं। इसलिए साहस का काम किया जाए और वह है परमात्मा से जुडऩा। इसमें हम स्वयं की ही परतेें हटाने लगते हैं। दुनिया में सबसे बड़ी हिम्मत का काम यह है कि खुद के यथार्थ को जान लेना।