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सूखे का दंश झेल रहे किसानों का असंतोष होगा निर्णायक

locationबैंगलोरPublished: Apr 16, 2018 10:21:17 pm

पुराना मैसूरु क्षेत्र हमेशा से सत्ता का केंद्र रहा है और आज भी इस क्षेत्र का अपना राजनीतिक महत्व है।

karnataka Assembly elections 2018

बेंगलूरु. पुराना मैसूरु क्षेत्र हमेशा से सत्ता का केंद्र रहा है और आज भी इस क्षेत्र का अपना राजनीतिक महत्व है। विकास की दौड़ में प्रदेश के अन्य हिस्सों से आगे रहने वाला यह इलाका पिछले कुछ सालों में सूखे और किसानों की आत्महत्या के कारण प्रतिकूल हालात का सामना कर रहा है।

कावेरी जल बंटवारे मामले में उच्चतम न्यायलय के आदेश से किसानों को थोड़ी राहत तो मिली लेकिन किसानों के अंदर असंतोष की अंदरुनी लहर भी है। लगातार तीन साल तक सूखे का दंश झेलने वाले कावेरी बेसिन के किसान खड़ी फसलों के नुकसान पर मुआवजा नहीं मिलने अथवा ऋण माफ नहीं किए जाने से नाराज हैं। सूखे के कारण यहां किसानों ने बड़े पैमाने पर आत्महत्या की जबकि कावेरी आंदोलन के कारण सामान्य जन-जीवन के साथ-साथ पर्यटन उद्योग भी बुरी तरह प्रभावित हुआ। दो प्रमुख चीनी मिलों के साथ 4 हजार से अधिक गुड़ बनाने वाली इकाइयां भी बंद हो गईं।

मैसूरु जिले के शिवप्पा नामक एक किसान ने नेताओं के चुनावी वायदों पर अपनी नाराजगी जाहिर कहते हुए कहा ‘मैं सिद्धरामय्या से कहना चाहता हूं कि वो खेतों में खड़ी हमारी धान की फसल की सिंचाई के लिए पानी छोड़वाने की व्यवस्था करें। चामुंडेश्वरी में जाकर उनका भाषण सुनने से ज्यादा जरूरी हमारी धान की फसल है।’


किसानों की यह नाराजगी राजनीतिक पार्टियों के लिए चिंता का विषय है। भले ही विकास के मामले में यह जिला राज्य के अन्य जिलों की तुलना में काफी आगे है लेकिन हाल के वर्षों में यह क्षेत्र उथल-पुथल के दौर से गुजरा है। विशेष रूप से कावेरी आंदोलन ने इस क्षेत्र की आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक स्थिति को भी काफी प्रभावित किया है।


मैसूरु के अलावा मंड्या, चामराजनगर, हासन, रामनगर, चिकबल्लापुर, चिकमगलूरु, कोलार और कोडुगू का राजनीतिक परिदृश्य काफी बदला है। कुछ दशक पहले यह कांग्रेस का गढ़ था लेकिन बाद में जनता दल (ध) ने यहां अच्छी पैठ बना ली। वोक्कालिगा, अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति बहुल इस क्षेत्र में भाजपा ने भी कुछ हद तक अपना प्रभाव कायम किया लेकिन अभी भी कई जिलों में उसका वजूद नहीं है। पिछले चुनावों में 20.2 फीसदी वोट के साथ 40 सीटें हासिल करने वाली पार्टी जनता दल (ध) इस बार यहां करो या मरो की स्थिति में है। किसानों की दुर्दशा का मुद्दा उठाकर वह वोक्कालिगा वोटों के धु्रवीकरण का हर संभव प्रयास कर रही है।

नंजनगुड़ और गुंडलपेट विधानसभा उपचुनावों में मिली शानदार जीत से उत्साहित सत्तारूढ़ कांग्रेस मुख्यमंत्री सिद्धरामय्या के करिश्मे, भाग्य योजनाओं, अहिंदा समीकरण और किसानों के लिए शुरू की गई सिंचाई परियोजना पर भरोसा जता रही है जबकि भाजपा सिद्धरामय्या सरकार की विफलताओं को मुद्दा बना रही है।

भले ही मैसूरु सिद्धरामय्या का गृह जिला है और वे यहां से चुनाव भी लड़ रहे हैं लेकिन जनता दल (ध) को उम्मीद है कि उसका प्रदर्शन बेहतर रहेगा। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के साथ गठजोड़ के बाद जनता दल (ध) यहां से बेहतर परिणाम की उम्मीद कर रही है लेकिन बसपा के साथ गठजोड़ का असर मामूली होगा। वहीं पार्टी की अंदरुनी कलह भी उसके लिए एक बड़ी चुनौती होगी। दूसरी ओर कांग्रेस के लिए कुछ पेयजल परियोजनाओं की धीमी रफ्तार भारी पड़ सकती है।

चिकबल्लापुर, हासन जिले के लिए येत्तिनहोले परियोजना, कोरमंगला-चलघट्टा घाटी परियोजना, कोलार, बंगारपेट और मालूर के लिए यळगुड़ परियोजना आदि का पूरा नहीं होना कांग्रेस की जीत की संभावनाओं को प्रभावित कर सकता है। चिकबल्लापुर में पर्यटन की संभावनाओं को भुनाने में सरकार की नाकामी और गिरते भू-जल स्तर के कारण काफी संख्या में लोगों का पलायन अन्य पड़ोसी राज्यों में हो गया। हालांकि, इन तमाम चुनौतियों के बावजूद कांग्रेस वर्ष 2013 से बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद रख रही है।


मण्ड्या और मैसूरु जिले के कुछ इलाकों में वोक्कालिगा और चामराजनगर और मैसूरु के कुछ इलाकों में लिंगायतों का ज्यादा प्रभाव है। कुरुबा और दलित मतदाता भी क्षेत्र में निर्णायक स्थिति में हैं। कुछ क्षेत्रों में अल्पसंख्यक मतदाताओं की संख्या भी अच्छी खासी है। मुख्यमंत्री देवेगौड़ा और पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवेगौड़ा क्षेत्र के प्रमुख नेताओं में हैं। हालांकि, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बी एस येड्डियूरप्पा भी इसी क्षेत्र के मूल निवासी हैं। वोक्कालिगाओं में जनता दल (ध) का अच्छा प्रभाव होने के बावजूद कांग्रेस ने यहां बड़ी विजय दर्ज की थी। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि पुराना मैसूरु क्षेत्र ऐतिहासिक रूप से कांग्रेस का मजबूत गढ़ रहा है। यहां ओबीसी, वोक्कालिगा और दलित मतदाताओं की बड़ी तादाद है और डी.देवराज अर्स के बाद सिद्धरामय्या दलित-पिछड़ा वर्ग आंदोलन के प्रतीक बने हैं। ऐसे में अहिंदा विचारधारा इस क्षेत्र में प्रभावी रहेगा।

2013 के चुनाव की स्थिति
पुराने मैसूरु क्षेत्र के १० जिलों की ५५ सीटों में कांग्रेस को २४, जद ध को २१, भाजपा को पांच सीटें मिली। अन्य के खाते में गई पांच सीटों में से १ समाजवादी पार्टी और १ राज्य किसान संघ ने जीती थी जबकि बाकी तीन सीटें निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीते थे। सिद्धरामय्या के गृह जिले मैसूरु की ११ सीटों में से ८ कांग्रेस और ३ जद ध ने जीती थी। पिछले विधानसभा चुनाव में जिले में भाजपा का खाता भी नहीं खुल पाया था। मण्ड्या जिले की ७ सीटों में से ४ जद ध, दो कांग्रेस और एक राज्य किसान संघ ने जीती थी।

चामराज नगर जिले की सभी ४ सीटें कांग्रेस ने जीती थी। देवेगौड़ा के गृह जिले हासन की ७ सीटों में ५ सीटें जद ध ने जीती जबकि कांग्रेस को २ सीटें मिली। कोलार जिले की ६ सीटों में से कांग्रेस को २, भाजपा और जद ध को १-१ को मिली थी जबकि दो सीटों पर निर्दलीय जीते थे। रामनगर जिले की ४ सीटों में से दो जद ध और १-१ सपा और कांग्रेस को मिली थी। चिकबल्लापुर जिले की ५ सीटों में से कांग्रेस और जद ध को २-२ सीटें मिली थी जबकि १ सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार जीता था। चिकमगलूरु जिले की ५ सीटों में २-२ भाजपा और जद ध और १ कांग्रेस को मिली थी। कोडुगू जिले दोनों सीटें भाजपा ने जीती थी। रामनगर जिले की ४ सीटों में से कांग्रेस और जद ध को २-२ सीटें मिली थ्ीं।

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