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शांति से मिल-बैठकर समाधान निकालें

locationबैंगलोरPublished: Aug 19, 2019 05:21:52 pm

गणेश बाग में कतिपय शरारती तत्वों द्वारा बैनर फाडऩे की घटना
मुख्यमंत्री को ज्ञापन, पुलिस आयुक्त से मुलाकात

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शांति से मिल-बैठकर समाधान निकालें

बेंगलूरु. गणेश बाग में कतिपय शरारती तत्वों द्वारा चातुर्मास को लेकर बनाए गए स्वागत द्वार पर लगे बैनर फाडऩे की घटना को लेकर फिलहाल जैन समाज के विभिन्न संगठनों और प्रबुद्धजनों ने सभी से सोशल मीडिया पर कुछ भी पोस्टिंग न करने और शांति बरतने का आग्रह किया है।
इससे पूर्व अखिल भारतीय जैन माइनोरिटी फेडरेशन का प्रतिनिधिमंडल रविवार दोपहर मुख्यमंत्री बीएस येडियूरप्पा से मिला और ज्ञापन दिया। गुरु आनंद चातुर्मास समिति एवं विभिन्न जैन संगठनों के प्रतिनिधियों ने एमएलसी लहरसिंह सिरोया के नेतृत्व में बेंगलूरु के पुलिस आयुक्त से मुलाकात कर उन्हें घटना के बारे में बताया और मामले में मिल-बैठकर सौहाद्र्रपूर्ण निराकरण का आग्रह किया।
फेडरेशन के कर्नाटक अध्यक्ष प्रसन्न संचेती एवं कर्नाटक महिला अध्यक्ष पवनदेवी बाफना के नेतृत्व में पांच सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल द्वारा मुख्यमंत्री येडियुरप्पा को दिए ज्ञापन में घटना की जानकारी देते हुए कर्नाटक में जैनियों और प्रवासी समाज के हितों की रक्षा का आग्रह किया गया है। इस पर मुख्यमंत्री ने आवश्यक कदम उठाने का आश्वासन दिया।
गुरु आनंद चातुर्मास समिति एवं विभिन्न जैन संगठनों के प्रतिनिधियों ने एमएलसी लहरसिंह सिरोया के नेतृत्व में बेंगलूरु के पुलिस आयुक्त को गणेश बाग जैसी घटना की पुनरावृत्ति न होने देने का अनुरोध किया। सूत्रों के अनुसार सिरोया ने बताया कि बेंगलूरु में दशकों से प्रवासी लोग स्थानीय समुदायों के साथ घुलमिल कर रह रहे हैं। वे कर्नाटक की संस्कृति, कन्नडिगाओं और कन्नड़ भाषा की अस्मिता के लिए सदैव समर्पित हैं।
उन्होंने समाज के लोगों को सुझाव दिया कि इस मामले को ज्यादा तूल न देकर शांति बनाए रखते हुए संयम और धैर्य से सौहार्द्रपूर्ण समाधान निकाला जाए। इस बीच बेंगलूरु दक्षिण संसदीय क्षेत्र के भाजपा सांसद तेजस्वी सूर्या ने ट्वीट कर कहा कि जैन समाज शांतिपूर्ण है उसकेसाथ ऐसी घटना से वास्तविक कन्नड़ प्रेमियों और कार्यकर्ताओं की भी बदनामी होती है।
उन्होंने एक अन्य ट्वीट में लिखा कि कई महान कवि जैसे पम्पा, पोन्ना और रन्ना, जिन्हें रत्नत्रया या कन्नड़ साहित्य के तीन रत्न कहा जाता है, वे भी जैन थे। बहुत पहले जैन युग में ही कन्नड़ साहित्य की शुरुआत हुई। उन्होंने युवा जैनियों से भी अपील की कि वे कर्नाटक के इतिहास को जानें और बोलचाल में कन्नड़ भाषा का प्रयोग करें।
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