scriptसेमी क्रायोजेनिक इंजन से पहली उड़ान 2020 तक | First flight from semi cryogenic engine till 2020 | Patrika News

सेमी क्रायोजेनिक इंजन से पहली उड़ान 2020 तक

locationबैंगलोरPublished: Sep 24, 2018 10:07:43 pm

अति गोपनीय माने जाने वाले स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन के विकास के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) सेमी क्रायोजेनिक इंजन के विकास की ओर अग्रसर है।

सेमी क्रायोजेनिक इंजन से पहली उड़ान 2020 तक

सेमी क्रायोजेनिक इंजन से पहली उड़ान 2020 तक

राजीव मिश्रा
बेंगलूरु. अति गोपनीय माने जाने वाले स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन के विकास के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) सेमी क्रायोजेनिक इंजन के विकास की ओर अग्रसर है। इसके विकास से इसरो के सबसे वजनी रॉकेट जीएसएलवी मार्क-3 की प्रक्षेपण क्षमता काफी बढ़ जाएगी। इसरो ने दिसम्बर 2020 तक सेमी क्रायोजेनिक चरण वाले जीएसएलवी मार्क-3 के प्रक्षेपण की योजना बनाई है।


इसरो अध्यक्ष के.शिवन ने पत्रिका के साथ बातचीत के दौरान कहा कि यह परियोजना प्रगति पर है और अगले दो साल में ही इसके पहले प्रक्षेपण की योजना है। उन्होंने कहा कि पूर्ण सेमी क्रायोजेनिक चरण तैयार करने के लिए अभी काफी काम बाकी हैं। फिर भी इसरो ने कई उपलब्धियां दर्ज की है। इंजन का विकास लगभग पूरा हो चुका है। अब परीक्षण शुरू होंगे। इंजन परीक्षण पूरा होने के बाद पूर्ण रूप से सेमी क्रायोजेनिक चरण तैयार किया जाएगा।

उन्होंने उम्मीद जताई कि वर्ष 2020 तक सेमी क्रायोजेनिक चरण वाले जीएसएलवी मार्क-3 का पहला प्रक्षेपण हो जाएगा। यह भारी रॉकेट जीएसएलवी मार्क-3 की पे-लोड क्षमता बढ़ाने के लिहाज से काफी अहम होगा। फिलहाल जीएसएलवी मार्क-3 अधिकतम चार टन वजनी उपग्रहों को भू-तुल्यकालिक अंतरण कक्षा (जीटीओ) में स्थापित करने की क्षमता रखता है।

सेमी क्रायोजेनिक इंजन के विकास के बाद वह अधिक ताकतवर हो जाएगा और 6 से 10 टन वजनी उपग्रहों को जीटीओ में पहुंचाने की क्षमता हासिल कर लेगा। सेमी क्रायोजेनिक इंजन में प्रणोदक (ईंधन) के तौर पर तरल हाइड्रोजन की जगह रिफाइंड केरोसिन का उपयोग किया जाएगा जबकि ऑक्सीडाइजर के तौर पर तरल ऑक्सीजन ही रहेगा। नव विकसित सेमी क्रायोजेनिक इंजन जीएसएलवी मार्क-3 में तरल चरण एल-110 की जगह लेगा जबकि तीसरा चरण क्रायोजेनिक अपर स्टेज सी-25 ही रहेगा।


हाल ही में क्रायोजेनिक इंजन की भी क्षमता बढ़ाने में इसरो को उल्लेखनीय सफलता मिली है। इसरो ने कहा है कि उसने स्वदेशी तकनीक से कॉपर-क्रोमियम-जर्कोनियम-टाइटेनियम का एक मिश्र धातु तैयार किया है जो क्रायोजेनिक और सेमीक्रायोजेनिक इंजन के लिए एक बेहद महत्वपूर्ण है। इसका उपयोग क्रायोजेनिक अपर स्टेज (सीयूएस) के थ्रस्ट चैंबर, इंजेक्टर फेस प्लेट, स्टीयरिंग इंजन, गैस जेनरेटर में होगा।

क्रायोजेनिक अपर स्टेज जीएसएलवी मार्क-2 और जीएसएलवी मार्क-3 रॉकेट का तीसरा चरण होता है। वहीं, यह मिश्र धातु सेमीक्रोयोजेनिक चरण के लिए भी जरूरी है। सेमी क्रायोजेनिक इंजन के प्री-बर्नर और पायरो प्रणाली में भी इसका उपयोग होगा। (पायरो प्रणाली में खराबी के कारण ही पीएसएलवी सी-39 मिशन विफल हो गया था।)


इसरो ने कहा है कि इस मिश्र धातु के विकास से क्रायोजेनिक इंजन की क्षमता 13 फीसदी बढ़ी है। तमिलनाडु के महेंद्रगिरि स्थित प्रणोदन परिसर में 200 सेकेंड का हॉट टेस्ट सफल रहा और अब इस बढ़ी हुई क्षमता वाले क्रायोजेनिक इंजन का उपयोग जीएसएलवी एफ-11 रॉकेट से संचार उपग्रह जीसैट-7 ए के प्रक्षेपण में होगा।

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