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निजी क्षेत्र के सहयोग से बना पहला स्वदेशी उपग्रह 31 को श्रीहरिकोटा से होगा प्रक्षेपित

locationबैंगलोरPublished: Aug 15, 2017 10:06:00 pm

देश की बढ़ती जरूरतों के मद्देनजर उपग्रहों की प्रक्षेपण संख्या बढ़ाने के प्रयास में जुटा भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) निजी क्षेत्र को प्रशिक्ष

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बेंगलूरु. देश की बढ़ती जरूरतों के मद्देनजर उपग्रहों की प्रक्षेपण संख्या बढ़ाने के प्रयास में जुटा भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) निजी क्षेत्र को प्रशिक्षित कर रहा है। इसके लिए उपग्रहों के निर्माण में निजी क्षेत्र के कंसोर्टियम को शामिल किया जा रहा है।

इसी महीने के अंत में 31 अगस्त को छोड़े जाने वाले नौवहन उपग्रह आईआरएनएसएस 1एच के निर्माण में लगभग 25 फीसदी हाथ निजी क्षेत्र का रहा। इस उपग्रह को श्रीहरिकोटा के लिए रवाना कर दिया गया है और अब पहली बार निजी क्षेत्र के सहयोग से बने उपग्रह का प्रक्षेपण होगा। लगभग 1400 किलोग्राम वजनी आईआरएनएसएस 1 एच भारतीय क्षेत्रीय नेविगेशन उपग्रह प्रणाली (आईआरएनएसएस) ‘नाविक’ का आठवां उपग्रह है। यह उपग्रह श्रृंखला के पहले उपग्रह आईआरएनएसएस-1 ए की जगह लेगा जिसकी परमाणु घडिय़ां खराब हो गई हैं।


इसरो के उच्च पदस्थसूत्रों के अनुसार अभी तक उपग्रहों के निर्माण में निजी क्षेत्र केवल उपग्रहों के कुछ पार्ट, हार्डवेयर या अन्य आवश्यक सामग्री की आपूर्ति करता रहा है। लेकिन, पहली बार आईआरएनएसएस 1 एच के निर्माण में उसकी भूमिका एसेंबलिंग में रही है। इस उपग्रह के निर्माण के लिए इसरो ने छह कंपनियों के कंसोर्टियम से लगभग 70 कर्मचारियों को तैनात किया जिन्होंने उपग्रह के एसेंबलिंग, इंटीग्रेशन और परीक्षण में भूमिका निभाई।

इसरो उपग्रह केंद्र (आईसैक) निदेशक एम अन्नादुरै के अनुसार इस उपग्रह के निर्माण में कंसोर्टियम का हाथ लगभग 25 फीसदी रहा। उन्होंने कहा कि निजी क्षेत्र की यह एक अच्छी शुरुआत कही जा सकती है। इस उपग्रह के निर्माण के दौरान निजी उद्योगों की टीम को प्रशिक्षित किया गया। टीम मेकेनिकल एसेंबलिंग, इलेक्ट्रिकल इंटीग्रेशन, परीक्षण तथा विभिन्न परीक्षणों में काफी सक्रिय रही। इसके लिए आईसैक ने एक अलग क्लीन रूम का उपयोग किया।

इस दौरान निजी उद्योगों की टीम इंटीग्रेशन तथा समस्त जांच प्र्रक्रियाओं पर नजदीकी नजर रख रही थी। डॉ अन्नादुरै के मुताबिक अगले आईआरएनएसएस 1 आई उपग्रह में निजी क्षेत्र की भूमिका ज्यादा बड़ी होगी। उन्हें विश्वास है कि अगले उपग्रह के एसेंबलिंग में निजी क्षेत्र की भूमिका 95 फीसदी होगी। लेकिन तमाम प्रक्रियाएं और उपग्रह की एसेंबलिंग इसरो की देखरेख में ही होगी। धीरे-धीरे काम का अनुपात बदलेगा और निजी क्षेत्र की भूमिका बढ़ जाएगी।

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