scriptकावेरी बोर्ड की पहली बैठक आज दिल्ली में | First meeting of Kaveri Board in Delhi today | Patrika News
बैंगलोर

कावेरी बोर्ड की पहली बैठक आज दिल्ली में

केंद्र सरकार ने 23 जून को बोर्ड और उसकी तकनीक इकाई समिति का गठन किया था

बैंगलोरJul 01, 2018 / 06:12 pm

कुमार जीवेन्द्र झा

cauvery river

कावेरी बोर्ड की पहली बैठक आज दिल्ली में

बेंगलूरु. पिछले महीने गठित कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण (सीडब्ल्यूएमए) और कावेरी जल नियामक समिति (सीडब्लूआरसी) की पहली बैठक सोमवार को दिल्ली के केंद्रीय जल आयोग भवन में होगी। हालांकि, कर्नाटक ने प्राधिकरण और समिति के गठन को शीर्ष अदालत में चुनौती देने का निर्णय लिया है लेकिन बैठक में राज्य के प्रतिनिधि भाग लेंगे। दोनों प्रतिनिधि राज्य की आपत्तियों को उठाने के साथ ही अपना पक्ष भी रखेंगे।
केंद्र सरकार ने दक्षिण के तीन राज्यों-कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल व केंद्र शासित प्रदेश पुदुचेरी के बीच कावेरी नदी के जल बंटवारा विवाद को सुलझाने के लिए उच्चतम न्यायालय से अनुमोदित समाधान योजना को 1 जून को अधिसूचित किया था। इसी के आधार पर केंद्र सरकार ने 23 जून को बोर्ड और उसकी तकनीक इकाई समिति का गठन किया था। हालांकि, समाधान योजना के कुछ प्रावधानों को लेकर आपत्ति के कारण कर्नाटक ने पहले अपने प्रतिनिधियों को नामित नहीं किया था लेकिन समिति के गठन के एक दिन बाद ही सरकार ने दोनों निकायों के लिए अपने प्रतिनिधयों को नामित कर दिया था।
जल संसाधन विभाग के प्रमुख सचिव राकेश सिंह प्राधिकरण और कावेरी नीरावरी निगम के प्रबंध निदेशक एचएल प्रसन्न कुमार समिति में राज्य का प्रतिनिधित्व करेंगे। माना जा रहा है कि बोर्ड इस साल मानसून के आगमन के बाद की स्थिति का जायजा लेने के बाद बेंगलूरु आधारित तकनीकी इकाई विनियमन समिति को दिशा-निर्देश देगी। अधिसूचना के मुताबिक तीन राज्यों-कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल में कावेरी नदी पर बने 8 बांध समिति की निगरानी के दायरे में आएंगे। इनमें से चार बांध-कृष्णराज सागर, कबिनी, हेमावती और हारंगी कर्नाटक में हैं जबकि तीन बांध-मेट्टूर, भावनी सागर और अमरावती तमिलनाडु में हैं। केरल में एक बांध बणासुर सागर है।
गौरतलब है कि शनिवार को मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी की अध्यक्षता में हुई सर्वदलीय बैठक में सर्वसम्मति से प्राधिकरण और समिति के गठन संबंधी केंद्र सरकार के फैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती देने का निर्णय लिया गया। राज्य का कहना है कि केंद्र सरकार ने उसकी आपत्तियों का निराकरण किए बिना ही दोनों निकायों का गठन कर दिया। साथ ही कानूनी प्रावधानों के मुताबिक दोनों निकायों के गठन से पहले संसद में चर्चा भी नहीं कराई गई।
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