ना जाने कितनी बार जन्म और मरण लिया होगा। पर जब पुण्योदय प्रबल होता है तब उसकी आत्मा एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय में से कोई भी एक में जन्म लेते पंचेन्द्रिय जीव में जब जीव आता है और तब उसकी काया परिवर्तन होती है। दूसरा दृष्टि परिवर्तन तब होता है जब मनुष्य भव की प्राप्ति होने के बाद सद्गुरु का संग होता है।
जिनवाणी का श्रवण कर वैराग्य की भावना उत्पन्न होते ही सम्यग दर्शन, ज्ञान की शुरुआत होती है। तीसरा हृदय परिवर्तन तब होता है जब साधक हर एक जीवों में राग-द्वेष का परिणाम देखकर उनकी परवशता का चिंतन करता है। चौथा परिवर्तन वैराग्य भाव पुष्ट करके सद्गुरू के पास दीक्षित होकर वेष बदलने के समय होता है। स्वभाव परिवर्तन पांचवां परिवर्तन है जो बहुत मुश्किल से होता है।