दरअसल, केसी वैली परियोजना शुरू होने के दो महीने के भीतर ही झील में प्रवाहित होने वाले जल की गुणवत्ता में अंतर आ गया और इस घटना के बाद उलटे भू-जल प्रदूषित होने की आशंका जताने वाले कार्यकर्ताओं का साहस बढ़ेगा। लोगों को डर है कि जल के साथ प्रवाहित होने वाले धातुओं और रसायन का खाद्यान्नों पर भी प्रभाव पड़ेगा जिसके घातक परिणाम हो सकते हैं।
शाश्वत होराटा समिति के आंजनेया रेड्डी ने कहा कि लक्ष्मीसागर झील के पास जो नजारा दिखा है वह बेंगलूरु के बेलांदूर झील की याद दिला रहा है। इस झाग को देखकर यह स्पष्ट हो जाता है कि बिना उपचारित किए जल को झील में बहाया जा रहा है। इसी बात का डर था।
इस क्षेत्र को बेंगलूरु के अनाज का कटोरा भी कहा जाता है। यहां बड़े पैमाने पर सब्जियां उगाई जाती हैं जो बेंगलूरु पहुंचती हैं। अगर इस जल को इसी तरह प्रवाहित किया जाता रहा तो कोलार में जो भी जल स्रोत बचे हैं उनके भू-जल प्रदूषित हो जाएंगे।
लक्ष्मीनगर के एक अन्य निवासी ने कहा कि योजना शुरू होने के बाद स्थिति और खराब हुई है। पहले थोड़ी गंध के साथ झाग निकलता था, अब बड़े पैमाने पर झाग निकल रहा है जिसमें गंध काफी तीव्र है।
लक्ष्मीसागर में दो टैंक एक ऊपर और एक नीचे। परियोजना के तहत दोनों टैंक भरे जा रहे हैं। पर्यावरणविद वाई.रेड्डी ने कहा कि अगर एयरोसोल में बैक्टीरिया और वायरस दोनों हैं तो यह मिनी रासायनिक एवं जैविक बम जैसा है। भले ही स्थानीय निवासियों को अभी कोई इसका असर पता नहीं चले लेकिन दीर्घ अवधि में इसके काफी बुरे परिणाम होंगे। हालांकि, इससे निपटने का तरीका है लेकिन सरकार उसे अपनाए तो।