राज्य में 3.50 लाख से अधिक कुपोषित बच्चे
कुपोषण की समस्या सिर्फ सुदूरवर्ती देहाती इलाके में ही नहीं, बेंगलूरु जैसे महानगर में भी है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में 33 लाख से अधिक कुपोषित बच्चे हैं, जो केंद्र सरकर की पोषण आहार योजना में पंजीकृत हैं। अगस्त तक के आंकड़ों के मुताबिक कर्नाटक में करीब 3.47 लाख कुपोषित और करीब 8 हजार गंभीर कुपोषित बच्चे हैं। बेंगलूरु शहरी जिले में ऐसे बच्चों की संख्या क्रमश: 5800 और 150 से अधिक है। हालांकि, नीति आयोग की रिपोर्ट में 30 में से 20 जिलों में कुपोषण के मामलें में गिरावट की प्रवृत्ति दिखाई गई है। राज्य सरकार भी पिछले साल की तुलना में आंकड़ों में मामूली सुधार का दावा कर रही है। कल्याण-कर्नाटक क्षेत्र के ६ जिले ऐसे हैं जहां कुपोषित बच्चों की संख्या 20 से 35 हजार के बीच है। यह आलम तब है जब राज्य में लगातार तीसरे साल खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि हुई है। वर्ष 2020-21 में राज्य में 158.7 लाख टन खाद्यान्न का उत्पादन हुआ, जो नया कीर्तिमान है।
कुपोषण की समस्या सिर्फ सुदूरवर्ती देहाती इलाके में ही नहीं, बेंगलूरु जैसे महानगर में भी है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में 33 लाख से अधिक कुपोषित बच्चे हैं, जो केंद्र सरकर की पोषण आहार योजना में पंजीकृत हैं। अगस्त तक के आंकड़ों के मुताबिक कर्नाटक में करीब 3.47 लाख कुपोषित और करीब 8 हजार गंभीर कुपोषित बच्चे हैं। बेंगलूरु शहरी जिले में ऐसे बच्चों की संख्या क्रमश: 5800 और 150 से अधिक है। हालांकि, नीति आयोग की रिपोर्ट में 30 में से 20 जिलों में कुपोषण के मामलें में गिरावट की प्रवृत्ति दिखाई गई है। राज्य सरकार भी पिछले साल की तुलना में आंकड़ों में मामूली सुधार का दावा कर रही है। कल्याण-कर्नाटक क्षेत्र के ६ जिले ऐसे हैं जहां कुपोषित बच्चों की संख्या 20 से 35 हजार के बीच है। यह आलम तब है जब राज्य में लगातार तीसरे साल खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि हुई है। वर्ष 2020-21 में राज्य में 158.7 लाख टन खाद्यान्न का उत्पादन हुआ, जो नया कीर्तिमान है।
सिर्फ कैलेरी, पोषक तत्व नहीं
विशेषज्ञों का कहना है कि अनाजों में कैलेरी है। लेकिन, पोषक तत्वों की मात्रा घटी है। राज्य में बच्चों के लिए कई योजनाएं हैं मगर विशेषज्ञों का कहना है कि इसमें दिए जाने वाले भोजन या अनाजों की मात्रा में वृद्धि के साथ ही पोषक तत्वों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। आंगनबाड़ी केंद्रों में भी सुधार की आवश्यकता है, जहां अभी ज्यादातर चावल आधारित भोजन ही दिया जाता है। दालों व अन्य पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ाई जानी चाहिए।
विशेषज्ञों का कहना है कि अनाजों में कैलेरी है। लेकिन, पोषक तत्वों की मात्रा घटी है। राज्य में बच्चों के लिए कई योजनाएं हैं मगर विशेषज्ञों का कहना है कि इसमें दिए जाने वाले भोजन या अनाजों की मात्रा में वृद्धि के साथ ही पोषक तत्वों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। आंगनबाड़ी केंद्रों में भी सुधार की आवश्यकता है, जहां अभी ज्यादातर चावल आधारित भोजन ही दिया जाता है। दालों व अन्य पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ाई जानी चाहिए।
मिश्रित खेती या फसल बदलें
अधिक मात्रा में खादों के उपयोग के कारण मिट्टी के साथ ही अनाजों की गुणवत्ता भी प्रभावित हो रही है। अच्छी पैदावार के लिए रसायनिक खादों का उपयोग बढ़ा है। कृषि विभाग के आंकड़े भी इसकी पुष्टि करते हैं। जानकारों का कहना है कि रसायनिक खादों के उपयोग को घटाने और पानी के अत्यधिक उपयोग को रोकने के लिए सरकार को पहल करनी चाहिए। तकनीक के उपयोग के साथ मिश्रित फसल या फसल चक्र में बदलाव के परंपरागत तरीके को अपनाया जा सकता है।
अधिक मात्रा में खादों के उपयोग के कारण मिट्टी के साथ ही अनाजों की गुणवत्ता भी प्रभावित हो रही है। अच्छी पैदावार के लिए रसायनिक खादों का उपयोग बढ़ा है। कृषि विभाग के आंकड़े भी इसकी पुष्टि करते हैं। जानकारों का कहना है कि रसायनिक खादों के उपयोग को घटाने और पानी के अत्यधिक उपयोग को रोकने के लिए सरकार को पहल करनी चाहिए। तकनीक के उपयोग के साथ मिश्रित फसल या फसल चक्र में बदलाव के परंपरागत तरीके को अपनाया जा सकता है।
पानी का अधिक उपयोग सही नहीं
बेंगलूरु कृषि विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं का कहना है कि पानी का अधिक उपयोग न तो फसलों के लिए अच्छा है और ना ही मिट्टी के लिए। अधिक पानी के उपयोग से मिट्टी में क्षारीयता और लवणता बढ़ती है। बूंद-बूंद सिंचाई से मिट्टी की पोषणता बनाए रखने के साथ उत्पादकता भी बढ़ेगी।
बेंगलूरु कृषि विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं का कहना है कि पानी का अधिक उपयोग न तो फसलों के लिए अच्छा है और ना ही मिट्टी के लिए। अधिक पानी के उपयोग से मिट्टी में क्षारीयता और लवणता बढ़ती है। बूंद-बूंद सिंचाई से मिट्टी की पोषणता बनाए रखने के साथ उत्पादकता भी बढ़ेगी।
पारंपरिक मानदंड को बदलने की जरूरत
बच्चों का एक वर्ग अधिक वजन तो दूसरा कुपोषण से जूझ रहा है। पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पारंपरिक मानदंड को बदलने की आवश्यकता है। पोषण की कमी से शरीर भी न्यूरोट्रांसमीटर सेरोटोनिन नहीं बनाता है और चिंता, अवसाद और चिड़चिड़ापन का सामना करना पड़ता है। बच्चों तक भोजन के रूप में जो अनाज पहुंच रहे हैं, उनमें पोषण तत्वों की कमी से इनकार नहीं किया जा सकता है। रसायनिक खादों का उपयोग बढऩे से पौष्टिकता में कमी आई है। स्कूल-कॉलेजों में शिक्षा के साथ-साथ पोषण संबंधी ज्ञान भी दिया जाना चाहिए।
– डॉ. एडविना राज, आहार विशेषज्ञ, एस्टर सीएमआई
बच्चों का एक वर्ग अधिक वजन तो दूसरा कुपोषण से जूझ रहा है। पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पारंपरिक मानदंड को बदलने की आवश्यकता है। पोषण की कमी से शरीर भी न्यूरोट्रांसमीटर सेरोटोनिन नहीं बनाता है और चिंता, अवसाद और चिड़चिड़ापन का सामना करना पड़ता है। बच्चों तक भोजन के रूप में जो अनाज पहुंच रहे हैं, उनमें पोषण तत्वों की कमी से इनकार नहीं किया जा सकता है। रसायनिक खादों का उपयोग बढऩे से पौष्टिकता में कमी आई है। स्कूल-कॉलेजों में शिक्षा के साथ-साथ पोषण संबंधी ज्ञान भी दिया जाना चाहिए।
– डॉ. एडविना राज, आहार विशेषज्ञ, एस्टर सीएमआई
क्षेत्र की जरूरतों के हिसाब से बने कार्यक्रम
कोरोना महामारी के कारण कुपोषित बच्चों की संख्या बढ़ी है। गंभीर रूप से कुपोषित क्षेत्रों और परिवारों का चिह्नित करना होगा। कुपोषित बच्चों को समय पर उपचार, उच्च गुणवत्तापूर्ण खाद्य सामग्री उपलब्ध करानी होगी। पोषण पुनर्वास केंद्रों को मजबूत करना होगा। एक ही पैमाने पर बने कार्यक्रम के बजाय हर क्षेत्र की खास जरूररतों के हिसाब से अलग व्यवस्था की दरकार है।
– डॉ. संजय गुरुराज, बाल रोग विशेषज्ञ, शांति हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर
कोरोना महामारी के कारण कुपोषित बच्चों की संख्या बढ़ी है। गंभीर रूप से कुपोषित क्षेत्रों और परिवारों का चिह्नित करना होगा। कुपोषित बच्चों को समय पर उपचार, उच्च गुणवत्तापूर्ण खाद्य सामग्री उपलब्ध करानी होगी। पोषण पुनर्वास केंद्रों को मजबूत करना होगा। एक ही पैमाने पर बने कार्यक्रम के बजाय हर क्षेत्र की खास जरूररतों के हिसाब से अलग व्यवस्था की दरकार है।
– डॉ. संजय गुरुराज, बाल रोग विशेषज्ञ, शांति हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर
खाद का उपयोग घटाएं
अधिक मात्रा में रसायनिक उर्वरकों का उपयोग व्यर्थ है। इससे मिट्टी की नैसर्गिक गुणवत्ता प्रभावित होती है। कृषकों को खादों का कितना उपयोग करना है इसके लिए जागरुक किए जाने की जरूरत है। पौष्टिकता बढ़ाने के लिए भी प्रयास किया जाना चाहिए। फसलों में बदलाव या मिश्रित फसल मददगार हो सकती है।
– वाईएस षडाक्षरी, कृषि विशेषज्ञ
अधिक मात्रा में रसायनिक उर्वरकों का उपयोग व्यर्थ है। इससे मिट्टी की नैसर्गिक गुणवत्ता प्रभावित होती है। कृषकों को खादों का कितना उपयोग करना है इसके लिए जागरुक किए जाने की जरूरत है। पौष्टिकता बढ़ाने के लिए भी प्रयास किया जाना चाहिए। फसलों में बदलाव या मिश्रित फसल मददगार हो सकती है।
– वाईएस षडाक्षरी, कृषि विशेषज्ञ