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इस कारण गर्मियों में होते हैं दिन लम्बे और सर्दियों में छोटे

locationबैंगलोरPublished: Jun 15, 2019 07:00:23 pm

ग्रीष्म अयनांत एक खगोलीय घटना है, जिसके बाद सूर्य आकाश में अपने पथ में दक्षिण की ओर अग्रसर होने लगता है। यह घटना 21 जून को हो रही है और इसका सही समय उस दिन भारतीय समयानुसार रात 9.24 बजे है। इसके बाद आने वाला हर दिन छोटा होने लगता है और रात लंबी।

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इस कारण गर्मियों में होते हैं दिन लम्बे और सर्दियों में छोटे

बेंगलूरु. ग्रीष्म अयनांत एक खगोलीय घटना है, जिसके बाद सूर्य आकाश में अपने पथ में दक्षिण की ओर अग्रसर होने लगता है। यह घटना 21 जून को हो रही है और इसका सही समय उस दिन भारतीय समयानुसार रात 9.24 बजे है। इसके बाद आने वाला हर दिन छोटा होने लगता है और रात लंबी।
जैसा कि आप जानते हैं पृथ्वी सूर्य का चक्कर लगाती है और अपने अक्ष पर 24 घंटे में एक बार घूम जाती है। अपनी कक्षा पर यह 23.5 डिग्री कोण पर झुकी है। इस कारण सूर्य का प्रकाश इसके उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध पर समान रूप से नहीं पड़ता है और दिन रात की अवधि एक समान नहीं रहती है। इस कारण गर्मियों में दिन लंबे और सर्दियों में छोटे होते हैं। 21 जून के दिन पृथ्वी का उत्तरी ध्रुव सूर्य की ओर अधिकतम झुका होता है, इसलिए इस दिन साल का सबसे लंबा दिन और सबसे छोटी रात होती है।
इसके बाद सूर्य दक्षिणायन हो जाता है और दिन धीरे-धीरे छोटे और रातें लंबी होने लगती हैं। 22 सितंबर के दिन इनकी अवधि बराबर अर्थात 12-12 घंटे की हो जाती है। इसके बाद रातें दिन से लंबी होने लगती हैं। 22 दिसंबर को शीत आयनांत होता है और उस दिन साल का सबसे छोटा दिन और सबसे लंबी रात होती है। यह चक्रवार्षिक है।
सूर्य सर्वाधिक ऊंचाई पर, छाया शून्य
21 जून को सूर्य दोपहर के समय आकाश में सर्वाधिक ऊंचाई पर पहुंचता है अर्थात तब जमीन पर पडऩे वाली छाया सबसे छोटी होती है। अनेक शौकिया लोग और छात्र उस दिन कुतुब मीनार की छाया की लंबाई मापते हैं। कुतुब मीनार 72.5 मीटर ऊंची है, किंतु इसके आधार पर केवल 90 सेंटीमीटर की छाया बनती है। इस दिन कर्क रेखा पर ठीक दोपहर के समय छाया शून्य हो जाती है। यदि आप 23.5 डिग्री उत्तरी अक्षांश और 23.5 डिग्री दक्षिणी अक्षांश के बीच रहते हैं तो आपको उत्तरायण और दक्षिणायन के दौरान साल में 2 दिनों से मिलते हैं जब दोपहर के समय छाया लुप्त हो जाती है। इन्हें शून्य छाया दिवस कहते हैं।
आज से 2300 साल पहले छाया मापने की इसी पद्धति से पृथ्वी की परिधि मापने का यत्न ग्रीक वैज्ञानिक एरोस्टेस्थेनिज ने किया था। उनका यह माप काफी शुद्ध था और आज के माप के हिसाब से उनकी शुद्धता 2 प्रतिशत के भीतर थी।
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