कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने मोदी पर यह कहते हुए निशाना साधा कि लोकतंत्र में एक व्यक्ति की सोच कभी ‘‘राष्ट्रीय सोच” नहीं हो सकती बल्कि ‘‘राष्ट्रीय सोच” ही प्रधानमंत्री की सोच होनी चाहिए।
प्रधानमंत्री और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बीच चक्रवात ‘यास’ के सिलसिले में बुलाई गए एक बैठक को लेकर हुए विवाद के बाद राज्य के मुख्य सचिव को केंद्र सरकार द्वारा दिल्ली वापस बुलाए जाने के फैसले की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को ‘‘बड़े भाई” (वरिष्ठता थोपने) की तरह काम ना करते हुए राज्यों के साथ सहयोग की भावना के साथ काम करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि सिर्फ गलतफहमी की वजह से मुख्य सचिव को वापस बुला लेना अच्छा नहीं है। यह संघीय व्यवस्था पर हमला है। प्रधानमंत्री को भी मुख्यमंत्री में गलतियां ढूंढने के बजाय उनका सहयोग करना चाहिए।
यह पूछे जाने पर कि विपक्ष के तमाम आरोपों के इतर भाजपा का दावा है कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद देश में सहकारी संघवाद मजबूत हुआ है, पूर्व मुख्यमंत्री ने दावा किया कि इसके उलट केंद्र और राज्यों के संबंधों में तनाव ही नहीं, बल्कि बेहद तल्खी भी आई है।
उन्होंने कहा कि आपदा के समय कांग्रेस और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन ने कभी राजनीति नहीं की, लेकिन आज हर चीज का राजनीतिकरण कर दिया जाता है। प्रधानमंत्री मोदी और केंद्र सरकार को आत्ममंथन करना होगा। उन्हें ‘बड़े भाई’ के रूप में नहीं बल्कि राज्यों के साथ मिलकर काम करना चाहिए।
कांग्रेस नेता ने कहा कि महामारी और आपदा के समय केंद्र एवं राज्यों के बीच तल्खी जनता के स्वास्थ्य के लिए कतई उचित नहीं है। उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल हो या कर्नाटक हो या फिर तिरुवनंतपुरम, सभी भारतीय हैं और सभी के प्रति भारत सरकार का कर्तव्य है और केंद्र सरकार किसी के साथ भेदभाव नहीं कर सकती। उन्होंने सवालिया लहजे में कहा कि जिन राज्यों में विपक्षी दलों का शासन है, वहां के नागरिक कोई विदेशी तो नहीं हैं।