scriptउम्र के साथ कमजोर पड़ती हैं मस्तिष्क की गतिविधियां | Gamma oscillations in the elderly human brain weaken with age | Patrika News

उम्र के साथ कमजोर पड़ती हैं मस्तिष्क की गतिविधियां

locationबैंगलोरPublished: Jun 05, 2020 12:07:22 pm

Submitted by:

Rajeev Mishra

आइआइएससी के वैज्ञानिकों ने पहली बार किया मनुष्यों पर प्रयोगअल्जाइमर, लकवाग्रस्त या मस्तिष्क विकार से ग्रसित मरीजों के लिए उपयोगी साबित होगा अध्ययन

उम्र के साथ कमजोर पड़ती हैं मस्तिष्क की गतिविधियां

उम्र के साथ कमजोर पड़ती हैं मस्तिष्क की गतिविधियां

बेंगलूरु.
भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) के वैज्ञानिकों ने यह साबित किया है कि उम्र बढऩे के साथ ही मस्तिष्क की कुछ गतिविधियां कमजोर पडऩे लगती हैं। अगर व्यक्ति स्वस्थ है तो भी। अभी तक इस तरह के अध्ययन सिर्फ अल्जाइमर-ग्रस्त चूहों पर ही हुए थे लेकिन आइआइएससी के वैज्ञानिकों ने पहली बार यह अध्ययन मनुष्यों पर किया है।
आइआइएससी ने कहा है कि मानव मस्तिष्क की गतिविधियों को विद्युत संकेतों के रूप में दर्ज किया जा सकता है। इनमें गामा दोलन भी शामिल हैं जो उच्च आवृत्ति वाले होते हैं। गामा दोलन मस्तिष्क के लोकल एरिया की सूक्ष्म गतिविधियों का संकेत देने में सक्षम हैं। आइआइएससी में मस्तिष्क विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों ने विभिन्न आयु वर्ग के स्वस्थ युवा एवं बुजुर्ग मनुष्यों पर शोध कर यह साबित किया कि जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है मानव मस्तिष्क में गामा दोलन कमजोर पड़ते जाते हैं। यह अध्ययन मस्तिष्क से जुड़ी बीमारियों, अल्जाइमर रोगियों अथवा लकवे के शिकार रोगियों के इलाज में आगे चलकर काफी उपयोगी साबित होगा।
युवा एवं बुजुर्गों पर प्रयोग
शोधकर्ताओं की टीम में शामिल और शोध पत्र का प्रकाशन करने वाले डॉ. वी.पी.एस. मूर्ति दिनवहि ने ‘पत्रिकाÓ को बताया कि यह प्रयोग वैसे मनुष्यों पर किया गया जिन्हे किसी भी प्रकार की मस्तिष्क-संबंधित स्वास्थ्य समस्या नहीं थी। शोध से यह स्पष्ट हुआ कि व्यक्ति के स्वस्थ होने की बजाय उम्र बढऩे का असर मस्तिष्क की गतिविधियों पर पड़ता है। यह प्रयोग 50 से 88 वर्ष के 227 स्वस्थ व्यक्तियों पर किया गया। इसके अलावा 20 से 49 साल के 46 युवाओं पर भी आंकड़े इकट्ठे किए गए।
ब्रेन मैपिंग कर दर्ज किए संकेत
मूर्ति ने बताया कि इसके लिए गैर-आक्रामक (नन-इनवैसिव) तरीका अपनाया गया और इलेक्ट्रो एन्सेफलाग्राफी (ईईजी) के जरिए ब्रेन मैपिंग की और मस्तिष्क की विद्युतीय गतिविधियों को दर्ज किया। यह प्रक्रिया ईसीजी जैसी ही है। लेकिन, जहां ईसीजी में अधिक से अधिक 12 चैनल उपयोग में लाए जाते हैं वहीं, इसमें खोपड़ी के ऊपर 64 इलेक्ट्रोड्स का प्रयोग किया गया। इस शोध में डॉ. मूर्ति के अलावा डॉ. सुप्रतिम रे, निम्हान्स के डॉ. नरेन राव, एम. एस. रामय्या अस्पताल के डॉ. महेन्द्र जे. और उनकी टीम शामिल थी।
बायोमार्कर की हो सकेगी डिजाइनिंग
मूर्ति ने बताया कि कुछ और शोध के बाद इस अध्ययन के आधार पर अल्जाइमर अथवा उम्र से संबंधित विकारों के लिए बायोमार्कर डिजाइन करने के अलावा लकवाग्रस्त रोगियों के लिए मस्तिष्क-कंप्यूटर इंटरफेस अनुप्रयोगों का विकास हो सकेगा।
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