रक्त में ऑक्सीजन को कम कर रहे गैस गीजर, इसलिए हो जाएं सतर्क
एलपीजी में ब्यूटेन व प्रोपेन गैस होती है, जो जलने के बाद कार्बन डाईऑक्साइड पैदा करती है।

- 24 में से 21 मामलों में पीडि़त बाथरूम में बेहोश पड़े मिले
- कार्बन मोनोऑक्साइड सेंसर जरूर लगाएं
- सरकारी दिशा-निर्देश और मानक तय नहीं, जागरूकता की कमी
निखिल कुमार
बेंगलूरु. बाथरूम में नहाते समय नौ वर्षीय बच्ची बेहोश हो गिर गई। काफी देर तक बाहर नहीं निकलने पर अभिभावकों को कुछ अटपटा लगा। बार-बार दरवाजा खटखटाने और आवाज लगाने के बाद भी बेटी ने जब दरवाजा नहीं खोला तो अभिभावकों ने बाथरूम का दरवाजा तोड़ दिया। अंदर दाखिल होते ही उन्होंने देखा की बच्ची जमीन पर बेहोश पड़ी है। सांस लेने में उसे भयंकर परेशानी हो रही थी। परिजन उसे उपचार के लिए निजी अस्पताल ले गए। अभिभावकों ने बाथरूम में गैस गीजर लगे होने की बात बताई तब जाकर चिकित्सकों को मामला समझ में आया।
मणिपाल अस्पताल के बाल रोक विशेषज्ञ डॉ. गुरुराज बिरादर ने बताया कि बच्ची के रक्त में ऑक्सीजन स्तर चार फीसदी तक गिर चुका था जबकि 93 फीसदी या इससे ज्यादा को सामान्य माना जाता है। जांच में बच्ची के रक्त में कार्बन मोनोऑक्साइड की मात्रा बेहद ज्यादा मिली। 48 घंटे तक वेंटिलेटर पर रखने के बाद स्वास्थ्य में सुधार के संकेत मिले। बच्ची अब स्वस्थ है। चिकित्सकों के अनुसार गैस गीजर से निकलने वाली जहरीली गैस बेहोश कर देती है। यह जानलेवा भी साबित हो सकती है।
20 मामले बेंगलूरु से
गैस गीजर सिंड्रोम (gas geyser syndrome) पर अध्ययन करने वाले अनीश एम. इ. ने बताया कि सर्दी के साथ गैस गीजर के इस्तमाल व इससे संबंधित हादसे भी बढ़े हैं। शहर के अस्पतालों में गत छह माह में गैस गीजर सिंड्रोम के 24 मामले आ चुके हैं। इनमें से 20 घटनाएं बेंगलूरु शहर में हुई। 21 मामलों में पीडि़त बाथरूम में बेहोश पड़ा मिला। उपचार के बाद ठीक हो गया जबकि दो मामलों में पीडि़त ने बाथरूम में ही दम तोड़ दिया। एक मामले में उपचार के एक सप्ताह बाद पीडि़त ने दम तोड़ा। 65 फीसदी पीडि़त पुरुष और शेष महिलाएं हैं।
अनीश ने बताया कि सर्दियों में पानी गर्म करने के लिए घरों में लगाए गए गैस गीजर में लीकेज एक बड़ा खतरा है। लीकेज की घटना इन दिनों बढ़ गई हैं। गैस गीजरों के बर्नर अक्सर चलते-चलते बंद हो जाते हैं। इससे गैस लीकेज होती है। इसलिए इनके प्रयोग के साथ खास सावधानी रखना भी उतना ही जरूरी है।
इसलिए है खतरनाक
एलपीजी सिलेंडर के जरिए गैस गीजर में पानी गर्म किया जाता है। एलपीजी में ब्यूटेन व प्रोपेन गैस होती है, जो जलने के बाद कार्बन डाईऑक्साइड पैदा करती है। छोटी जगह में जब गैस गीजर चलता है तो वहां कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा बढऩे लगती है और ऑक्सीजन की कमी होने लगती है। ऐसे में नहाने के दौरान पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं मिलने के कारण मस्तिष्क में भी ऑक्सीजन की कमी हो जाती है और बेहोश होने का डर बना रहता है।
ये ध्यान रखें
दरअसल, गैस गीजर के इस्तमाल के लिए अब तक कोई दिशा-निर्देश नहीं हैं। इसलिए सरकार द्वारा दिशा-निर्देश तैयार कर मानक तय किए जाने चाहिए। ताकि लोगों को पता चले कि उसका सुरक्षित इस्तमाल कैसे किया जा सकता है।
- गैस गीजर बाथरूम में बाहर की तरफ लगाया जाना चाहिए। ताकि एलपीजी गैस जलने पर हानिकारक गैस अंदर न रहे।
- यदि गीजर अंदर हो तो नहाते वक्त उसे बंद कर दिया जाना चाहिए।
- बच्चों को अकेले नहीं नहाने दें।
- गैस गीजर लगाने से पहले बाथरूम को हवादार जरूर बनाएं।
- बाथरूम में गैस गीजर प्रयोग के समय खिड़की जरूर खोलकर रखें। बाथरू में सिलेंडर न रखें।
- गैस गीजर के साथ कार्बन मोनोऑक्साइड सेंसर भी लगाएं।
- जहरीली गैस चढऩे पर बाथरूम में बेहोश हुए व्यक्ति को तुरंत खुली हवा में ले आएं।
- बचाने वाले को भी गैस चढ़ सकती है इसलिए अपना भी बचाव करें।
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