scriptरेकार्ड आंकड़े देने वाली ‘लांगलेंग’ 5 वीं बार आएगी नागालैंड | Giving record data 'Longleng' to come Nagaland for the 5th time | Patrika News

रेकार्ड आंकड़े देने वाली ‘लांगलेंग’ 5 वीं बार आएगी नागालैंड

locationबैंगलोरPublished: Jul 30, 2020 10:22:50 pm

Submitted by:

Rajeev Mishra

उपग्रह टैगिंग के बाद लंबी अवधि तक आंकड़े देने वाला प्रवासी अमूर फाल्कन

रेकार्ड आंकड़े देने वाली ‘लांगलेंग’ 5 वीं बार आएगी नागालैंड

रेकार्ड आंकड़े देने वाली ‘लांगलेंग’ 5 वीं बार आएगी नागालैंड

बेंगलूरु.
जलवायु और मौसम की गहरी समझ रखने वाले प्रवासी अमूर फाल्कन (छोटा बाज) पक्षियों का इस बार देश में विशेष इंतजार है। मंगोलिया से सोमालिया और दक्षिण अफ्रीका तक लगभग 22 हजार किमी लंबी यात्रा के दौरान अक्टूबर-नवम्बर में ये नागालैंड-मणिपुर को ठौर बनाते हैं।
रिकॉर्ड ट्रैकिंग
लाखों पक्षियों के इस झुंड में एक ऐसा पक्षी है जिसपर वैज्ञानिकों की निगाहें टिकी हुई हैं। यह मादा पक्षी है और इसका नाम नागालैंड के एक जिले के नाम पर ‘लांगलेंग’ रखा गया है। खास बात यह है कि यह पांचवा मौका होगा जब ‘लांगलेंग’ भारत आएगी। 30 अक्टूबर 2016 को इसकी पहचान हुई और उपग्रह टैगिंग (ट्रांसमीटर लगाया) की गई। तब से अब तक (3 साल 9 महीने से) यह लगातार बहुमूल्य आंकड़े उपलब्ध कराती रही है जो कि एक रिकॉर्ड है। इससेे कई अनूठी जानकारियां मिलीं हैं। फिलहाल लांगलेंग बीजिंग से 500 किमी उत्तर-पश्चिम में भीतरी मंगोलिया इलाके में है। अक्टूबर महीने के मध्य में सारे प्रवासी पक्षियों के साथ लांगलेंग के भी नागालैंड पहुंचने की उम्मीद है।
प्रकृति और जलवायु की अद्भूत समझ
भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ आर.सुरेश कुमार ने ‘पत्रिका’ को बताया कि ये पक्षी बेवजह या बेवक्त एक जगह से दूसरे जगह नहीं जाते। ये एक खास मौसम में ही दुनिया के एक विशेष भू-भाग को स्पर्श करते हैं। प्रकृति और वातावरण के प्रति इन पक्षियों का रिस्पांस हमें काफी कुछ सिखाता है क्योंकि मौसम और जलवायु की इनकी समझ काफी गहरी होती है। जलवायु परिवर्तन के भविष्य में पडऩे वाले प्रभावों का अगर अध्ययन करना है तो इन पक्षियों के अध्ययन से गहरी समझ पैदा होगी।
हर भू-भाग की गजब की पहचान
गर्मियां शुरू होते ही मध्य अप्रेल में ये सोमलिया से चलते हैं और भारत के ऊपर से गुजरकर म्यांमार और चीन के रास्ते मंचूरिया पहुंचते हैं। यह तीन देशों चीन, रूस और मंगोलिया का सीमावर्ती इलाका है। ब्रीडिंग के बाद जब सर्दियों की दस्तक होती है तो अक्टूबर मध्य से नवम्बर मध्य तक लगभग चार सप्ताह नागालैंड-मणिपुर में गुजारते हैं। नवम्बर मध्य में ये सोमलिया के लिए प्रस्थान करते हैं। करीब 15 दिन सोमालिया में बिताने के बाद दक्षिण अफ्रीका का रुख कर लेते हैं।
शिकारी बने संरक्षक
दरअसल, वर्ष 2012 में नागालैंड में बड़े पैमाने पर (1 से 1.5 लाख) इनपक्षियों को मार दिया गया। तब भारत सरकार ने वन्यजीव संस्थान के जरिए इनके संरक्षण के प्रयास शुरू किए। इसके तहत पक्षियों की उपग्रह टैङ्क्षगग शुरू हुई और उनका नामकरण नागालैंड के गांवों व जिलों के नाम पर किया गया। पहले जिन तीन पक्षियों की टैङ्क्षगग हुई उनका नाम ‘नागा’, ‘पगती’ और ‘वोखा’ रखा गया। नागा ने तीन साल तक आंकड़े दिए। जब इन पक्षियों की बदौलत नागालैंड के गांवों और जिलों का नाम पूरे विश्व तक पहुंचने लगा तो शिकार करने वाले स्थानीय खुद उनका संरक्षण करने लगे। आज नागालैंड को ‘वल्र्ड कैपिटल ऑफ अमूर फाल्कन’ कहा जाता है। नागालैंड-मणिपुर में ये एक-साथ लाखों की तादाद में नजर आते हैं जबकि किसी दूसरे देश में एक-साथ कुछ हजार ही नजर आते हैं।
धरती की कार्यप्रणाली की है गहरी समझ
किसी एक देश का पक्षी नहीं है अमूर फाल्कन
नागालैंड से उड़ान भर सीधे सोमालिया में उतरते हैं
लगभग 5 से 6 दिन लगातार भरते हैं उड़ान
गुजरात से करते हैं प्रवेश, मुंबई के ऊपर से प्रस्थान
दस लाख से अधिक पक्षी हैं झुंड में
पिछले साल 5 पक्षियों की हुई थी टैगिंग, तीन सक्रिय
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