बैंगलोर

झलका सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक इतिहास

बेंगलूरु विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग ने पुराने दुर्लभ सिक्के और डाक टिकट प्रदर्शनी का आयोजन किया।

बैंगलोरMay 17, 2019 / 10:49 pm

शंकर शर्मा

झलका सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक इतिहास

बेंगलूरु. बेंगलूरु विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग ने पुराने दुर्लभ सिक्के और डाक टिकट प्रदर्शनी का आयोजन किया। प्रदर्शित १७०० से भी ज्यादा सिक्कों में उनके समय की सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक इतिहास झलक रही थी। सेवानिवृत्त इंजीनियर रामा राव ने गत सात दशकों में इन सिक्कों को संग्रहीत किया है। मगध, मौर्य, जहांगीर, शहजहां, औरंगजेब और अकबर आदि के समय के सिक्कों ने लोगों को खूब आकर्षित किया।

विजयनगर, मैसूरु और हैदराबाद जैसे दक्षिण भारतीय साम्राज्यों के सिक्के भी शामिल थे। विद्यार्थियों को शुरुआत से लेकर अब तक के हर प्रकार के डाक टिकटों को एक साथ देखने का अवसर मिला। बीयू के कुलपति प्रो. केआर वेणुगोपाल ने कहा कि आजादी से पहले, मुगलकालीन और राजाओं के इतिहास की रोमांचक घटनाओं की छाप लिए सिक्कों की जानकारी मिली।


कुलसचिव (प्रशासन) प्रो. बीके रवि, कुलसचिव (मूल्यांकन) प्रो. शिवराजू और इतिहास विभाग की प्रमुख प्रो. नागरत्नम्मा ने भी कार्यक्रम में भाग लिया।

तुमकूरु में कई तालाब सूखे, अब नहीं आते विदेशी पक्षी
तुमकूरु. दो से ढाई दशक पहले तक जिले के मधुगिरी, चिकनायकन हल्ली, सिरा तहसीलों में कई तालाब बारहों माह भरे रहते थे। ये तालाब विभिन्न प्रजाति के देशी-विदेशी पक्षियों का आशियाना हुआ करते थे। मगर अब यह तालाब सूख गए हैं, जिससे कई प्रजाति के विदेशी पक्षी दिखाई नहीं देते। बताया जाता है कि यह विदेशी पक्षी यहां वर्ष के निर्धारित मौसम में प्रजनन के लिए पहुंचते थे। पक्षियों को निहारने और कैमरों में कैद करने के लिए यहां लोगों की भीड़ लगती थी। मगर अब यह विदेशी मेहमान नदारद हैं।

जिले के सिरा तहसील के मशहूर कग्गलडु पक्षीधाम मेंश्रीलंका, म्यांमार, बांग्लादेश, पाकिस्तान, आस्ट्रेलिया, मलेशिया, न्यूजीलैंड जैसे देशों के पक्षी बड़ी संख्या में पहुंचते थे। सूखे के कारण सभी तालाब सूख जाने से इस वर्ष कोई विदेशी पक्षी यहां नहीं दिखाई दिया है। सिरा, कल्लंबेला, बोरन कवणे तथा वाणी विलास बांध में थोड़ा बहुत पानी बचा है। वर्ष 1997 में इस पक्षी धाम में पहली बार सैकड़ों की संख्या में विदेशी पक्षी दिखाई दिए थे। यह विदेशी पक्षी यहां छह माह तक रहे थे। उसके पश्चात यह चले गए। उसके पश्चात वर्ष 2000 में विदेशी पक्षी यहां पर फिर पहुंचे थे।

प्रजनन के पश्चात ये पक्षी अपने देश लौट जाते थे। आम तौर पर जनवरी से अप्रेल के अंत तक पक्षी आते थे। पक्षी तालाबों के आस-पास पेड़ों पर घोंसला बनाते थे। विदेशी पक्षियों के साथ यहां के गांव वालों का भावनात्मक रिश्ता था। मगर सूखे के कारण यहां के निवासी विदेशी पक्षियों के साथ रिश्ते की भावनात्मक अनुभूति नहीं कर पा रहे हैं।

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